चिराग की फितरत

जिस राह पर हर बार  मुझे

अपना कोई छलता रहा ।

फिर भी ना जाने क्यों मैं

उसी राह ही चलता रहा।

सोंचा इस बार….

रौशनी नहीं धुआँ दूँगा।

लेकिन चिराग था फितरत से,

जलता रहा..

  जलता रहा……

 

Anonymius