
बाती की लौ भभक
कर लहराई।
बेचैन चराग ने पूछा –
क्या फिर हवायें सता रहीं हैं?
लौ बोली जलते चराग से –
हर बार हवाओं
पर ना शक करो।
मैं तप कर रौशनी
बाँटते-बाँटते ख़ाक
हो गईं हूँ।
अब तो सो जाने दे मुझे।

बाती की लौ भभक
कर लहराई।
बेचैन चराग ने पूछा –
क्या फिर हवायें सता रहीं हैं?
लौ बोली जलते चराग से –
हर बार हवाओं
पर ना शक करो।
मैं तप कर रौशनी
बाँटते-बाँटते ख़ाक
हो गईं हूँ।
अब तो सो जाने दे मुझे।