कसौटी पर स्वर्ण

अक्सर फ़रेब करने वाले,

आज़माते रहते हैं दूसरों को।
भूल जाते हैं, फ़िज़ा में घुली

ख़ुशबुएँ आज़माई नहीं जाती।
गुमान करने वाले परखनते रहते हैं, दूसरों को।

कसौटी पर स्वर्ण ही परखते हैं।
भूल जातें हैं लोहे परखे नहीं जाते।

दूसरों में कमियाँ ढूँढने वाले

धूल आईना की साफ़ करते रहते है,

भूल जातें है ख़ुद के चेहरे साफ़ करना।

कसौटी

ज़िंदगी और लोग बार बार  परख रहें हैं?

गम ना करो!

सिर्फ़ सोना हीं बार बार

कसौटी पर परखा जाता है।

 

हिना – कविता

हमने तो जिंदगी को कभी ना जाँचा ना परखा ना इम्तहान लिया,

फिर यह क्यों रोज़ नये इम्तहान लेती,  परखती रहती है?

सोने की तरह कसौटी पर कस कर अौर कभी

पत्थर पर घिस कर हिना बना हीं ङालेगी  शायद।

कहते हैं

रंग लाती है हिना पत्थर पर घिस जाने के बाद ……..