Lovely Lake city – Lavasa, Maharashtra

 

Beautiful  Lavasa’s  plan is   based on the stylish Italian town Portofino, with a street and several buildings bearing the name of that town.

There are many  good hotels ,  exquisite  2 and 1 bedroom apartments and studio apartments / cottages.

 

Shortcut  to  hills and cottages.

 

View of Lavasa  from Bombay point –  lake and watersports point 

Lavasa is a privately planned hill city located near Pune in Maharashtra. Its a 2:30- 3 hrs drive from Pune. It   is located in the Western Ghats of Maharashtra and is situated in Mulshi Valley

 

 

Nature trail 

 

 

Nature trail  – Ant nest area.

 

Club and swimming pool

 

 

 

Peaceful evening  at the lakeside.

 

A Walk along the serene Nature trail 

 

 

Mercure Hotels’ green walls .

 

A walk  along the city.

Backwater of  Mose river. It is also called Veer Baaji Pusalkar Dam.

 

Images courtesy Chandni Sahay

Someshwar Wadi temple Pune सावन में सोमेश्वर महादेव 

Beautiful Heritage  Swayambhu  Someshwar temple of Pune was  built with black stone  in  1640 by Shivaji for his mother Jijabai.

पुणे के इस सुंदर विरासत  स्वयंभू ( स्वंय भुमि से निकला शिवलिंग)  सोमेश्वर मंदिर  को 1640 में शिवाजी ने काले पत्थरों से,  अपनी मां जिजाबाई के लिए बनाया था। वह वहाँ नियमित रुप से पूजा करने आती थीं।

 :

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
Om Try-Ambakam Yajaamahe
Sugandhim Pusstti-Vardhanam
Urvaarukam-Iva Bandhanaan
Mrtyor-Mukssiiya Maa-[A]mrtaat ||

– from Rig Veda 7.59.12

Meaning:
1: Om, We Worship the Three-Eyed One (Lord Shiva),
2: Who is Fragrant (Spiritual Essence) and Who Nourishes all beings.
3: May He severe our Bondage of Samsara (Worldly Life), like a Cucumber (severed from the bondage of its Creeper), …
4: … and thus Liberate us from the Fear of Death, by making us realize that we are never separated from our Immortal Nature.

 

मंदिर का मुख्य द्वार main entrance of the temple

                                                                        गर्भ गृह द्वार

 

काले पाषाण का शिवलिंग और खूबसूरत श्वेत फर्श

 

रुद्र का अभिषेक –  

 

 

 

 

Beautiful Bhigwan – A Bird Sanctuary

Bhagwan  is located on the Pune-Solapur Highway(Maharastra) around 105 km from Pune on the backwaters of Ujani dam.  Its famous for migratory birds such as Ducks, Herons, Egrets, Raptors and Waders along with flocks of hundreds of flamingos

 

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Searching for Breakfast  –    Black Headed Ibis,

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     Asian Open Billed Stork  and  Black-winged Stilt in noon.

 

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An evening in  Bhigwan with seagulls…….  lovely  seabirds  

 

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beautiful long tailed, Green Bee Eater

 

 

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Grey Heron ready to take a flight……..

 

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I wish I could fly like a bird  एक आजाद परिंदे की तरह……..

 

 

 

Image courtesy Chandni Sahay

वैधनाथ धाम या बाबधाम – (ज्योतिर्लिंग ५)

देवताओं का घर, देवघर बैद्यनाथ ज्योसतिर्लिंग, झारखंड में है। यह सिद्धपीठ है “कामना लिंग” भी कहलाता हैं। प्रायः सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा दिखता है मगर वैद्यनाथधाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण आदि सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं। कहा जाता है कि रावण पंचशूल से ही अपने राज्य लंका की सुरक्षा करता था। यहाँ महाशिवरात्री और श्रावण माह में विशेष पूजन होता  है।

विशेष पूजा, काँवर पद यात्रा– यहाँ पवित्र श्रावण मास में गंगा जलार्पण का विशेष महत्व है। श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगाजल पात्रों में भर काँवर में रखकर बैद्यनाथ धाम और बासुकीनाथ की कठिन पद यात्रा करते हैं। यह दूरी लगभग १०५ किलोमीटर है। जिसे नंगे पैर चल कर पूरा किया जाता है। पवित्र जल पात्र व काँवर को कहीं भी भूमि पर नहीं रखा जाता है। मंदिर पहुँच कर इस जल से ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया जाता है।

मान्यता  है कि शिव के गले में लिपटे रहने वाले वासुकीनाथ की पूजा शिव को प्रसन्नता प्रदान करती है। अतः ज्योतिर्लिंग पूजन के बाद देवघर से 42 किलोमीटर दूर जरमुण्डी गाँव के शिव मन्दिर स्थित वासुकीनाथ का  दर्शन-पूजन अवश्य करना चाहिए। जनश्रुति व लोकमान्यता है कि यह वैद्यनाथ-ज्योतिर्लिग मनोवांछित फल देने वाला है। इसलिए इसे कामना लिंग भी कहतें हैं।

किवदंती

किवदंती है कि महान शिव भक्त, राक्षसराज रावण ने हिमालय पर्वत पर घोर तपस्या की। अपने सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ाना  शुरू कर दिये। एक-एक करके नौ सिर चढ़ाने के बाद दसवाँ सिर काटने ही वाला था। तभी शिवजी प्रसन्न हो प्रकट हुए। उन्होंने उसके दसों सिर ज्यों-के-त्यों कर दिये और उससे वरदान माँगने कहा।

रावण ने लंका में उन्हे स्थापित करने की आज्ञा चाही। शिवजी ने उसे एक शिवलिंग दे कर कहा, वह जहां भी इसे पृथ्वी पर रखेगा, शिव वहाँ वास करेंगे। प्रसन्न, मुदित रावण शिवलिंग लेकर लंका की ओर चला। ईश्वर इच्छा, मार्ग में उसे लघुशंका की आवश्यकता हुई। वह शिवलिंग एक चरवाहे को थमा लघुशंका-निवृत्ति होने गया।

रावण को देर होते देख चरवाहा शिवलिंग भूमि पर रख चला गया। वापस आ कर रावण पूरी शक्ति लगा कर भी शिवलिंग को उखाड़ नहीं सका। क्रोध और निराशावश शिवलिंग को अपना अँगूठे से नीचे धंसा दिया। आज भी इस शिवलिंग का छोटा हिस्सा हीं धरती से ऊपर है। फिर सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की स्थापना उसी स्थान पर कर दी। जनश्रुति के अनुसार वैद्यनाथ-ज्योतिर्लिग मनोवांछित फल देने वाला है अतः भगवान शिव ने जानबुझ कर ऐसी परिस्थिति बना दी कि राक्षस राज रावण शिवलिंग लंका नहीं ले जा सके।

ज्योतिर्लिंग – पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। हिंदु मान्यतानुसार इनके दर्शन, पूजन या प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेने मात्र से सात जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है।

शिव पुराण – शिव पुराण, कोटि ‘रुद्रसंहिता’ में इस प्रकार बारह ज्योतिर्लिंगों की चर्चा है, जिसमें सोमनाथ का वर्णन प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में किया गया है।

सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्।।
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्।
वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये।।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।
यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमाः।
तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः।।

अर्थात – सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर। जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।

ओंकारेश्वर – (ज्योतिर्लिंग 4 )

कावेरिका नार्मद्यो: पवित्र समागमे सज्जन तारणाय |
सदैव मंधातत्रपुरे वसंतम ,ओमकारमीशम् शिवयेकमीडे ||

अर्थ:- कावेरी एवं नर्मदा नदी के पवित्र संगम पर सज्जनों के तारण के लिए, सदा ही मान्धाता की नगरी में विराजमान श्री ओंकारेश्वर जो स्वयंभू हैं वही ज्योतिर्लिंग है.

यह मध्य प्रदेश के प्रमुख शहर इंदौर से ७७ किमी की दूर खंडवा जिले में नर्मदा के उत्तर, नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है। इंदौर से यहाँ सड़क मार्ग से जाया जा सकता है। यह द्वीप हिन्दू पवित्र चिन्ह ॐ के आकार में बना है। ओंकारेश्वर लिंग एक प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है। यहाँ पर भगवान महादेव को चना का दाल चढ़ाने की परम्परा है। स्कंद पुराण, शिवपुराण व वायुपुराण में भी ओम्कारेश्वर क्षेत्र की महिमा का उल्लेख मिलता है |

मान्यता है, यहाँ भगवान शिव ओंकार स्वरुप में प्रकट हुए थे और यायावर शिव प्रतिदिन तीनो लोकों में भ्रमण के बाद यहाँ आकर विश्राम करते हैं।अतः यहाँ के शयन आरती और शयन दर्शन का विशेष महत्व हैं।

एक अन्य मान्यतानुसार, ओंकार शब्द का उच्चारण सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मुख से हुआ था, अतः किसी भी वेद का पाठ इसके उच्चारण बिना पूर्ण नहीं होता है। माना जाता हैं कि इस पवित्र ॐ क्षेत्र में 33 करोड़ देवी- देवता निवास करते हैं।

किवदंतियाँ

1 राजा मान्धाता ने नर्मदा तट के इस पर्वत पर घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। उनसे यहीं निवास करने का वरदान माँग लिया। तब से यह शिव स्थली, पर्वत मान्धाता पर्वत कहलाने लगा।

2 एक अन्य कथानुसार, इस मंदिर में शिवलिंग स्थापना, देवताओ के धनपति कुबेर ने की थी। यहाँ धनतेरस की सुबह ४ बजे से अभिषेक और लक्ष्मी वृद्धि पेकेट (सिद्धि) वितरण होता है। जिसे घर पर ले जाकर दीपावली की अमावस को विधिनुसार धन रखने की जगह पर रखने से घर में प्रचुर धन और सुख शांति आती हैं I

3 एक कहानी के अनुसार एक बार देव और दानवों में भयंकर युद्ध हुआ। दानव विजयी होने लगे। तब देवताओं के आवहान से भगवान शिव ने ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में आ कर दानवों को पराजित किया।

4 एक पौराणिक कथानुसार  एक बार घुमक्कड़ नारद मुनी ने विंध्य पर्वत से पर्वत मेरु की प्रसंशा की। विंध्य पर्वत ने मेरु से बड़ा बनने के लिए यहाँ पर भगवान शिव के पार्थिवलिंग की पूजा की और भगवान शिव की कृपा और वरदान प्राप्त किया।

ज्योतिर्लिंग – पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। हिंदु मान्यतानुसार इनके दर्शन, पूजन या प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेने मात्र से सात जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है।
शिव पुराण – शिव पुराण, कोटि ‘रुद्रसंहिता’ में इस प्रकार बारह ज्योतिर्लिंगों की चर्चा है, जिसमें सोमनाथ का वर्णन प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में किया गया है।

सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्।।
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्।
वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये।।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।
यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमाः।
तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः।।

अर्थात – सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर। जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।

महाकालेश्वर उज्जैन (ज्योतिर्लिंग 3 )

तीसरा ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर है। यह क्षिप्रा नदी के किनारे, मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। प्राचीन ग्रन्थों में उज्जैन को उज्जयिनी तथा अवन्तिकापुरी के नाम से भी जाना जाता है। श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग रुद्रसागर ताल के बगल में स्थित है। उज्जैन में प्रत्येक बारह वर्ष पर महाकुम्भ का आयोजन होता है। भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव को अत्यन्त सिद्ध और तांत्रिक महत्व का माना जाता है।

इस ज्योतितिर्लिंग की एक और विशेषत है।यहाँ प्रात:काल की पूजा में अनिवार्य रूप से सवा मन श्मशान के चिता भस्म द्वारा अभिषेक किया जाता है। इस भस्म आरती में सम्मिलित होना पुण्यदायी माना जाता है। इसके लिए विशेष टिकट की व्यवस्था है।

पौराणिक कथा

1 शिव पुराणनानुसार, भगवान ब्रह्मा और विष्णु में कौन श्रेष्ठ है, यह जानने के लिए उज्जैन में शिव जी ने विशाल ज्योति का अंतहीन स्तंभ बना दिया और भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा को दो दिशाओं में प्रकाश के अंत को खोजने के लिए भेजा। विष्णु ने हार स्वीकार कर ली पर ब्रह्मा ने झूठ बोल दिया। शिव ने नाराज़ ब्रह्माजी को को शाप दिया कि पूजा विधानों में उनका स्थान नहीं रहेगा।। ऐसी मान्यता है कि शिव द्वारा स्थापित ज्योती स्तंभ स्थान पर उज्जैन में ज्योतिर्लिंग स्थापित है।

2 दूसरी किवदंती एक शिव भक्त ब्राह्मण और उसके चार पुत्रों के बारे में है। जो इस स्थान पर सर्वदा पिनाकी या शिव के पार्थिव लिंग की पूजा करते थे। शिव ने साक्षात प्रकट हो कर दूषण नामक असुर से इस परिवार की रक्षा की। उन्हें महाकाल शिव ने हमेशा अपने वहाँ विराजमान होने का वर दिया। इस प्रकार यह भगवान शिव की स्थली बन गई और भगवान शिव महाकालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए।

3 तीसरी कथानुसार, उज्जयिनी नगरी में महान शिवभक्त चन्द्रसेन नामक एक राजा थे। शिवजी के पार्षद, मणिभद्र जी उन्हें महामणि कौस्तुभ मणि प्रदान किया। सूर्य के समान देदीप्यमान, मंगल प्रदान करनेवाली मणी को पाने के लालच में सभी पड़ोसी राजाओं ने उज्जयिनी पर हमला कर दिया। पर उज्जयिनी के एक छोटे से बालक में भी शिव भक्ती की गहराई देख उन्होने शत्रुता त्याग मित्रता कर लिया। भगवान महेश्वर की कृपा पाने के लिए उन्होंने भी वहाँ महाकालेश्वर का पूजन किया।

मान्यता है कि, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने से स्वप्न में भी किसी प्रकार का दुःख अथवा संकट नहीं आता है। जो कोई भी मनुष्य सच्चे मन से महाकालेश्वर लिंग की उपासना करता है, उसकी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं और वह परलोक में मोक्षपद को प्राप्त करता है-

महाकालेश्वरो नाम शिवः ख्यातश्च भूतले।
तं दुष्ट्वा न भवेत् स्वप्ने किंचिददुःखमपि द्विजाः।।
यं यं काममपेदयैव तल्लिगं भजते तु यः ।
तं तं काममवाप्नेति लभेन्मोक्षं परत्र च।।

ज्योतिर्लिंग – पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। हिंदु मान्यतानुसार इनके दर्शन, पूजन या प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेने मात्र से सात जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है।
शिव पुराण – शिव पुराण, कोटि ‘रुद्रसंहिता’ में इस प्रकार बारह ज्योतिर्लिंगों की चर्चा है, जिसमें सोमनाथ का वर्णन प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में किया गया है।

सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्।।
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्।
वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये।।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।
यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमाः।
तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः।।

अर्थात – सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर। जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (ज्योतिर्लिंग 2 )

 

ज्योतिर्लिंग – पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। हिंदु मान्यतानुसार इनके दर्शन, पूजन या प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेने मात्र से सात जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है।

शिव पुराण – शिव पुराण, कोटि ‘रुद्रसंहिता’ में इस प्रकार बारह ज्योतिर्लिंगों की चर्चा है, जिसमें सोमनाथ का वर्णन प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में किया गया है।

सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्।।
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्।
वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये।।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।
यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमाः।
तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः।।

अर्थात – सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर। जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।

मल्लिकार्जुन – दक्षिण का कैलाश, आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन विराजमान हैं। ऐसी मान्यता है की, श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो, अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है और संसार में आवागमन से मुक्ति मिल जाती है।

पौराणिक कथा– जब कार्तिकेय और गणेश दोनों विवाह योग्य हुए। तब किसका विवाह पहले हो , इसपर विवाद होने लगा। माता-पिता ने कहा, जो इस पृथ्वी की परिक्रमा पहले करेगा, उस का विवाह पहले किया जाएगा। कार्तिकेय जी तत्काल पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए दौड़ पड़े। स्थूलकाय गणेश जी का अपने वाहन मूषक पर पृथ्वी परिक्रमा असंभव था। अतः बुद्धिदेव गणेश ने माता पार्वती और पिता देवाधिदेव शिव को आसन आसीन कर उनकी सात परिक्रमा की और विधिवत् पूजन कर उनका आशीर्वाद लिया। फलतः गणेश माता-पिता की परिक्रमा कर पृथ्वी की परिक्रमा से प्राप्त होने वाले फल की प्राप्ति के अधिकारी बन गये।

पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रकान्तिं च करोति यः।
तस्य वै पृथिवीजन्यं फलं भवति निश्चितम्।।

उनकी चतुराई से शिव और पार्वती प्रसन्न हुए और गणेश जी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियां सिद्धि और ऋद्धि से करा दिया।
कार्तिकेय सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आये। सारी बात जान कर नाराज़ कार्तिकेय, घर त्याग कर क्रौंच पर्वत पर चले गए। शिव और पार्वती ने कार्तिकेय को मनाने का बहुत प्रयास किया। पर वे वापस नहीं आये। तब दुखी माता पार्वती भगवान शिव को लेकर क्रौंच पर्वत पर पहुँची। भगवान शिव क्रौंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाने गए। मल्लिका, माता पार्वती का नाम है और भगवान शंकर को अर्जुन कहा जाता है। अतः इसे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। परंतु कार्तिकेय उनके आने से पहले क्रौंच पर्वत छोड़ कर जा चुके थे।

सोमनाथ ( ज्योतिर्लिंग -1)

SHIV
SHIV

ज्योतिर्लिंग – पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। हिंदु मान्यतानुसार इनके दर्शन, पूजन या प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेने मात्र से सात जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है।

शिव पुराण – शिव पुराण, कोटि ‘रुद्रसंहिता’ में इस प्रकार बारह ज्योतिर्लिंगों की चर्चा है, जिसमें सोमनाथ का वर्णन प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में किया गया है।
सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्।।
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्।
वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने।
सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये।।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।
यं यं काममपेक्ष्यैव पठिष्यन्ति नरोत्तमाः।
तस्य तस्य फलप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः।।

अर्थात – सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल, ॐकारेश्वर अथवा अमलेश्वर, परली में वैद्यनाथ, डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशङ्कर, सेतुबंध पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ और शिवालय में श्रीघुश्मेश्वर। जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और संध्या के समय इन बारह ज्योतिर्लिङ्गों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिंगों के स्मरण मात्र से मिट जाता है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग– यायावर शिव के १२ ज्योतिर्लिंग है। जिसमें गुजरात (सौराष्ट्र) के काठियावाड़ में सोमनाथ मन्दिर जिसे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को प्रथम माना गया है।
माना जाता है कि पापनाशक-तीर्थ, सोमनाथ भगवान की पूजा और उपासना करने से क्षय तथा कोढ़ आदि जैसे कठिन रोग नष्ट हो जाते हैं। मान्यता है कि, देवताओं द्वारा स्थापित सोमकुण्ड में लगातार छः माह तक स्नान करने से क्षय जैसे रोग ठीक हो जाते हैं।

सोमनाथ
सोमनाथ

पौराणिक कथाहर रात गगन में, दस सफेद घोड़े या मृगवाले रथ पर सवार युवा, सुंदर चंद्र मन मस्तिष्क, भावनाओं, संवेदनशीलता, कोमलता और कल्पनाशीलता का प्रतिनिधित्व करता है । उन्हें राजनीपति (रात का स्वामी ) और सोम भी कहा गया है। ऐसे उज्ज्वल चाँद से प्रजापति दक्ष ने अपनी सत्ताइस पुत्रियों का विवाह प्रसन्नपूर्वक किया।

चन्द्रमा को अपनी सत्ताइस पत्नियों में रोहिणी विशेष प्रिय थी। अतः अन्य 26 पत्नियों ने अपने पिता अपनी व्यथा कही। पुत्रियों की व्यथा और चन्द्रमा के पक्षपातपूर्ण व्यवहार सुनकर दक्ष भी दुःखी हुए। उन्होने ने अपने दामाद समझाने का बहुत प्रयास किया। पर चंद्रमा उनकी अवज्ञा करते रहे। क्रोधित हो दक्ष ने चंद्रमा को क्षयरोग होने का श्राप दे दिया। इस श्राप से मुक्ति के लिए चंद्र ने पर कठिन शिव आराधना और मृत्युंजय-मंत्र जप किया। शिव उनकी दृढ़ भक्ति को देखकर इस स्थान पर साकार लिंग रूप में प्रकट हो गये। शिव ने साक्षात दर्शन दे कर वर दिया कि उसकी कला प्रतिदिन एक पक्ष में क्षीण हुआ करेगी, जबकि दूसरे पक्ष में प्रतिदिन वह निरन्तर बढ़ती रहेगी। चन्द्रमा के नाम पर भगवान शिव सोमनाथ कहलाए और सोमेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए।

Tropic of Cancer ( Geography )

Tropic of cancer, MP, India. zero or no shadow zone
Tropic of cancer, MP, India. zero or no shadow zone

Tropic of Cancer

The imaginary line, the Tropic of Cancer is the circle marking the latitude 23.5 degrees north, where the sun is directly overhead at noon on June 21. When the sun is overhead, the long shadows of objects at sunrise start becoming smaller and smaller. Finally the shadow is smallest. That why this zone is known as Zero or No shadow Zone.

   Tropic of Cancer, passing near Ujjain, MP India.    Tropic of Cancer passes through 8 (Eight) states of India. they are Gujara, Rajasthan, MP, Chhattisgarh, Jharkhand, West Bengal, Tripura and Mizoram.

 

 

 

image taken fron internet n  by rekha.

कर्क रेखा ( भौगोलिक ज्ञान )

भारत के मध्य से गुजरती कर्क रेखा
भारत के मध्य से गुजरती कर्क रेखा

कर्क रेखा ग्लोब के उत्तरी गोलार्ध में, पश्चिम से पूर्व की ओर खींची गई कल्पनिक रेखा हैं। भारत में कर्क रेखा मध्य प्रदेश में उज्जैन के करीब से निकलती है।

छाया रहित क्षेत्र या नो शैडो ज़ोन
छाया रहित क्षेत्र या नो शैडो ज़ोन

नो शैडो ज़ोन  – २१ जून को सबसे लंबा दिन और रात सबसे छोटी होती है। इस दिन सूर्य इस रेखा के एकदम ऊपर होता है। इसलिए सूर्य की किरणें यहां एकदम ऊपर से पड़ती हैं। इसलिए परछाईं एकदम छोटी होतीं है। जो ठीक नीचे होने से नज़र नहीं आती है। इस कारण इन क्षेत्रों को छायाविहीन क्षेत्र या अंग्रेज़ी में नो शैडो ज़ोन भी कहा जाता है।सूर्य की स्थिति मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर बढ़ने को उत्तरायण एवं कर्क रेखा से मकर रेखा को वापसी को दक्षिणायन कहते हैं।