मैं एक नेचर राइटर (NCF) भी हूँ। मेरा यह लेख एक अख़बार में प्रकाशित हुआ है, जिसका लिंक यहाँ साझा कर रही हूँ। धन्यवाद। https://www.amarujala.com/columns/blog/how-climate-change-affect-butterflies-life-cycle-know-its-impact-2025-09-09?pageId=1
बसंत के रंगीन दूत
जलवायु परिवर्तन और तितलियाँ
तितलियाँ केवल सुंदरता की प्रतीक नहीं, बल्कि प्रकृति की नाजुक कड़ी हैं। शोध और कीट वैज्ञानिक (Entomologists) बताते हैं कि तितलियाँ परागण के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इनका जीवन पूरी तरह से मौसम और तापमान पर निर्भर करता है। यही कारण है कि जलवायु परिवर्तन इनकी संख्या, प्रवास, जीवन चक्र और परागण प्रक्रियाओं पर सीधा असर डालता है।
जैसे-जैसे तापमान असामान्य होता है या वर्षा का पैटर्न बिगड़ता है, कुछ तितलियाँ अधिक प्रजनन करती हैं, तो कुछ विलुप्ति के कगार पर आ जाती हैं। तितलियाँ पर्यावरण संतुलन, कृषि और जैव विविधता के लिये बेहद महत्वपूर्ण हैं।
लेमन इमिग्रेंट बटरफ्लाई (Catopsilia pomona)
यह तितली दक्षिण-पश्चिम एशिया की मूल निवासी है, पर अब भारत के अनेक भागों में पाई जाती है। इसका रंग हल्का पीला होता है, और पंखों के किनारे काले होते हैं। यह एक प्रवासी प्रजाति है, जो मार्च से जून के बीच, मानसून के पहले प्रवास करती है।
इनकी जनसंख्या मौसम में थोड़े से बदलाव से भी तेजी से प्रभावित होती है, इसलिए इसे जलवायु संकेतक प्रजाति (Climate Indicator Species) कहा जाता है। ये तितलियाँ सेनना (Senna) या कैसिया (Cassia) पौधों पर अंडे देती हैं। 3-4 दिनों में अंडों से लार्वा निकलते हैं और लगभग दस दिनों में प्यूपा बन जाते हैं। प्यूपा रेशमी धागों से पत्तियों के डंठलों से लटकते हैं। फिर इनमें से नन्हीं तितलियाँ निकलती हैं, जो जीवन के चक्र को आगे बढ़ाती हैं।
लोककथा:
एक प्राचीन गाँव की लोककथा कहती है कि एक बार सावन के बाद भी अमलतास नहीं खिला। गाँव की एक बच्ची ने तितलियों को पुकारा। थोड़ी देर में पीली-पीली तितलियाँ झुंड में आईं और अमलतास के पीले फूल खिल कर झूम उठे। तभी से मान्यता है — “अमलतास तब तक नहीं खिलता, जब तक ये तितलियाँ उसके चारों ओर नृत्य न करें।“
तितलियाँ नारी शक्ति, जीवन की जननी और प्रकृति की चेतना की प्रतीक मानी जाती है।
मॉटल्ड इमिग्रें टबटरफ्लाई (Catopsilia pyranthe)
इस तितली को Common Emigrant Butterfly भी कहा जाता है। यह अत्यंत फुर्तीली और प्रवासी स्वभाव की होती है। सफेद या हल्का पीला रंग, और पंखों पर हल्के धब्बे — इसकी पहचान है। यह फूलों से रस (nectar) पीते हुए परागण करती है। पराग इसके पैरों से चिपककर एक फूल से दूसरे फूल तक जाता है, जिससे नए बीज और फल उत्पन्न होते हैं।
यह तितली लंबी दूरी तय करके नए इलाकों में अंडे देती है — जहां नवजीवन पनपता है। परन्तु जलवायु परिवर्तन ने इनके जीवन और पौधों के विकास के बीच संतुलन बिगाड़ दिया है। जब होस्ट प्लांट और तितली के जीवन चक्र का समय मेल नहीं खाता, तो परागण प्रभावित होता है।
लोकविश्वास:
ग्रामों में कहते हैं, “बसंत की कोई तारीख नहीं होती।वो इन तितलियों के सफेद रेशमी पंखों पर सवार हो कर खेतों में उतरता है।“
जब ये झुंड में उड़ती हैं तब किसान इन्हें सरसों के पीले फूलों पर देखता है, तो वह सोचता है:
“अब ऋतु बदलेगी, अब धरती मुस्कुराएगी।“
जलवायु परिवर्तन के कारण:
- ग्रीनहाउस गैसों की बढ़त
- वनों की कटाई
- प्रदूषण और औद्योगिकीकरण
- प्लास्टिक और संसाधनों का अत्यधिक उपयोग
- शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि
इसके परिणाम:
- मौसम के चक्र में असामान्यता
- तितलियों के जीवन में बाधा
- परागण प्रक्रिया में कमी
- जैव विविधता और कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव
समाधान:
- तितलियों के लिए कैसियावसेना जैसे होस्ट पौधों को संरक्षित करना
- रासायनिक कीटनाशकों से बचना
- अधिक पेड़ लगाना
- जैविक कृषि को अपनाना
- प्लास्टिक मुक्त जीवनशैली
- जन-जागरूकता और स्थानीय संरक्षण परियोजनाएँ
निष्कर्ष:
तितलियाँ न केवल फूलों की सुंदरता बढ़ाती हैं, बल्कि धरती के लिए जीवन का संदेश लाती हैं। इनका संरक्षण सिर्फ एक प्रजाति का नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण है। क्योंकि जब रंग-बिरंगी तितली एक फूल से दूसरे फूल पर पराग लेकर उड़ती है तभी प्रकृति मुस्कुराती हैं — और तभी जीवन खिलता है।
लेखिका:
Dr. Rekha Rani, Writer | Counsellor | Ex-Professor फ़ोटोग्राफर : पवन दामोरे, स्थान: पुणे, महाराष्ट्र, भारत.
Climate Change”. – Theme: Effects of Climate Change – The articles must focus on the effects of climate change on specific topics or species.
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