कुछ कम कुछ ज्यादा

धूप का एक टुकड़ा मिला

ज़िंदगी मीठा सा संगीत

लहज़ा-ए-गुफ़्तगू

जब हम समझना नहीं चाहते !

ख़ुद की आवाज़ लगा

ग़लत रास्ता चुना मैंने

तन्हा

इश्क़-ए-रूह

हुरूफ़