कभी कैक्टस, कभी पत्थर
बन जाती है नरम मुलायम जीभ।
कभी नर्म कभी गर्म, कभी ज़ख्म पर
मरहम सा सुकून भरा फाहा।
कभी घाव दे जाती है नाज़ुक जीभ।
कभी रिश्ते बनाती, कभी बिगाड़ती है।
कभी गुनाहगार कभी बेगुनाह निर्दोष बन जाती है।
शायद इसलिए ज़ुबान की दहलीज़ पर
लबों के पहरे होते हैं।
शायद इसलिए जुबाँ
कई दीवारों के पहरे में क़ैद रहती है।
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।। ~~ कबीर

Beautiful, outstanding, too good. Loved it, Rekha ji. ♥️♥️♥️♥️♥️🌹🌹🌹🌹
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Thanks Aparna. I always love your comments/ compliments dear.
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बहुत सुंदर।
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धन्यवाद।
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Kitni mulayam …..kitni kathor ban jaati hai ye jihwa………satya…..shandar.
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Han, jubaan me badi taakat hoti hai. Aapka aabhaar.
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Swagat apka.
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😊
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