
विडम्बना
जिस चित्रकूट घाट पर तुलसीदास बैठा करते,
सती अनुसुइयाऋषि अत्रि की थी तपो भूमि ,
राम, लक्ष्मण सीता के वनवास की पावन भूमि .
उसे भी अपावन कर दिया कलयुग में.
क्या दोषी सज़ा पाएँगे या हमेशा की तरह …..
शान से घुमते नज़र आएँगे ?

विडम्बना
जिस चित्रकूट घाट पर तुलसीदास बैठा करते,
सती अनुसुइयाऋषि अत्रि की थी तपो भूमि ,
राम, लक्ष्मण सीता के वनवास की पावन भूमि .
उसे भी अपावन कर दिया कलयुग में.
क्या दोषी सज़ा पाएँगे या हमेशा की तरह …..
शान से घुमते नज़र आएँगे ?
जब मालूम हैं
संसार में जो कुछ भी मिला है ,
यहीं, पीछे रह जाएगा.
फिर क्यों इतना अहंकार ?
इतना पाने खोने की हैं दौड़ ?

पुरानी राहों पर निगाहें दौड़ने पर
खोए हुए लाल गुलाब की पंखुड़ियाँ
यहाँ वहाँ सूखी बिखरीं दिखीं.
उम्रदराज़ यादों को संजोना
क्या नीलकंठ बना देगा ?
या कलेजा जला देगा ?

नीलकंठ –
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