ज़िंदगी के रंग -139

रिश्तों की कद्र करनी है ,

तो अभी करो जब ज़रूरत हैं .

जाने के बाद किसे पड़ी हैं

देखने की, आँसूओ की सच्चाई ?

12 thoughts on “ज़िंदगी के रंग -139

    1. कुछ लोग समय रहते नहीं समझते और कुछ अहंकार में रिश्तों के मोल को नहीं समझते .

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  1. वाह ! क्या बात कही है रेखा जी आपने ! एक शेर याद आ गया :
    आँच देंगे सर्द मौसम में दुशालों की तरह
    टूटने मत दीजिये रिश्तों को प्यालों की तरह

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    1. बहुत सुंदर शेर कहा आपने. शुक्रिया जितेंद्र जी.
      ये पंक्तियाँ ज़िंदगी की सच्चाई हैं.

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