ज़िंदगी के रंग -125

चाहो या ना चाहो

ख़ालीपन का एहसास

कई अनुत्तरित प्रश्न अस्तित्व में आतें है.

जो धुंध में, गहरी छिपी होती है कि

किसी का जाना ……दुनिया से,

लुप्त रोशनी नहीं ,

कई विचारों की शुरुआत है .

क़ैद सिर्फ़ सलाखो की नहीं, यादों की भी होती हैं

9 thoughts on “ज़िंदगी के रंग -125

    1. शुक्रिया मधुसूदन , सलाखों की क़ैद से निकला जा सकता है पर यादों की क़ैद से चाह कर भी निकलना मुश्किल है .

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  1. आपने ठीक कहा रेखा जी । आशा भोसले जी की मशहूर ग़ज़ल – ‘दर्द जब तेरी अता है तो गिला किससे करें’ का आख़िरी शेर है :
    तेरे लब तेरी निगाहें तेरा आरिज़ तेरी ज़ुल्फ़
    इतने ज़िंदा हैं तो इस दिल को रिहा किससे करें

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    1. अभी मैंने इस ग़ज़ल को सुना. दिल को छूने वाली ग़ज़ल है भावार्थ तो बिलकुल वैसा हीं है .
      आपकी ऐसी जानकारी हमेशा मुझे अचरज में डालती है. यह क़ाबिले तारीफ़ है.
      इस ग़ज़ल के बारे में बताने के लिए बहुत आभार.

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