चाहो या ना चाहो
ख़ालीपन का एहसास
कई अनुत्तरित प्रश्न अस्तित्व में आतें है.
जो धुंध में, गहरी छिपी होती है कि
किसी का जाना ……दुनिया से,
लुप्त रोशनी नहीं ,
कई विचारों की शुरुआत है .
क़ैद सिर्फ़ सलाखो की नहीं, यादों की भी होती हैं

चाहो या ना चाहो
ख़ालीपन का एहसास
कई अनुत्तरित प्रश्न अस्तित्व में आतें है.
जो धुंध में, गहरी छिपी होती है कि
किसी का जाना ……दुनिया से,
लुप्त रोशनी नहीं ,
कई विचारों की शुरुआत है .
क़ैद सिर्फ़ सलाखो की नहीं, यादों की भी होती हैं

Good lesson for life
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Thank you. I believe, life is the best teacher.
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Thank you
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क़ैद सिर्फ़ सलाखो की नहीं, यादों की भी होती हैं….bahut khub……umda lekhan.
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शुक्रिया मधुसूदन , सलाखों की क़ैद से निकला जा सकता है पर यादों की क़ैद से चाह कर भी निकलना मुश्किल है .
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bilkul sahi kaha…..
jaaye to jaaye kahaan ….jahan tum nahi.
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आपने ठीक कहा रेखा जी । आशा भोसले जी की मशहूर ग़ज़ल – ‘दर्द जब तेरी अता है तो गिला किससे करें’ का आख़िरी शेर है :
तेरे लब तेरी निगाहें तेरा आरिज़ तेरी ज़ुल्फ़
इतने ज़िंदा हैं तो इस दिल को रिहा किससे करें
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अभी मैंने इस ग़ज़ल को सुना. दिल को छूने वाली ग़ज़ल है भावार्थ तो बिलकुल वैसा हीं है .
आपकी ऐसी जानकारी हमेशा मुझे अचरज में डालती है. यह क़ाबिले तारीफ़ है.
इस ग़ज़ल के बारे में बताने के लिए बहुत आभार.
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