किसी प्रिय मित्र ने लिखा –
साइलेंट मोड़ पर फ़ोन अच्छे लगते हैं ,
दोस्त नहीं .
पर क्या करें दोस्त ,
ज़िंदगी की डाउन्लोडिंग बीच में हीं अटक गई है .
वरना हम भी दोस्त थे काम के …..

किसी प्रिय मित्र ने लिखा –
साइलेंट मोड़ पर फ़ोन अच्छे लगते हैं ,
दोस्त नहीं .
पर क्या करें दोस्त ,
ज़िंदगी की डाउन्लोडिंग बीच में हीं अटक गई है .
वरना हम भी दोस्त थे काम के …..

काश कुछ यादों को
चुन कर याद रखने अौर कुछ को
भूल जाने का कोई तरीका होता।
पसंदीदा चुन लेते,
दर्द देने वाली यादों को मिटा देते ,
पर यह तो कुछ
फूल और कांटों जैसी साथ-साथ होती है
कुछ चुभती हैं
और कुछ खुशबू फैलाती है


Goodbyes are only for those who love with their eyes. Because for those who love with heart and soul there is no such thing as separation.
Rumi ❤️❤️
मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां उर्फ “ग़ालिब” (२७ दिसंबर १७९६ – १५ फरवरी १८६९) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे।
कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती
मौत का एक दिन मु’अय्यन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती
जानता हूँ सवाब-ए-ता’अत-ओ-ज़हद
पर तबीयत इधर नहीं आती
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
वर्ना क्या बात कर नहीं आती
क्यों न चीख़ूँ कि याद करते हैं
मेरी आवाज़ गर नहीं आती
दाग़-ए-दिल नज़र नहीं आता
बू-ए-चारागर नहीं आती
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती
मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुमको मगर नहीं आती।
meaning- बर नहीं आती = पूरी नहीं होती), (सूरत = उपाय) (मु‘अय्यन = तय, निश्चित)
(सवाब = reward of good deeds in next life, ता’अत = devotion,ज़हद = religious deeds or duties चारागर – doctor, healer.
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