चाहो या ना
चाहो ये यादें
साये की तरह
लिपटी रहती है .
बग़ैर इजाज़त तुम्हें
याद करने की गुस्तखियों के
लिए तहे दिल माफ़ी की गुज़ारिश है.
.
चाहो या ना
चाहो ये यादें
साये की तरह
लिपटी रहती है .
बग़ैर इजाज़त तुम्हें
याद करने की गुस्तखियों के
लिए तहे दिल माफ़ी की गुज़ारिश है.
.
जीना सीखते सीखते
बरसो लग जाते है .
और जीना सीखते समझते
जाने का वक़्त आ जाता है.
फिर भी कहने वाले कहते है –
” तुम्हें जीना नहीं आया ‘

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