एक था गुल्लक .
अरमानों का.
आधे अधूरे और कुछ पूरे
अरमानों को डालते डालते ,
कब वक़्त गुज़र गया ,
पता नहीं .
जब गुल्लक फूटा….
नज़रों के सामने
बिखरे गये अरमान अनेक .
गुड़िया सजाने ,
पड़ोस के बाग़ से अमरूद चुराने ,
अौर ना जाने कितने सारे अरमान ……
सब पुराने….. बेकार ……
एक्सपायर हो चुके थे .
