सूर्य के उदय से अस्त होने के साथ घटती आयु,
जन्म, जरा, कष्ट, और मृत्यु को देखकर भी मनुष्य को भय नहीं होता।
आशा , तृष्णा, राग- द्वेष, तर्क-वितर्क, अधैर्य , अज्ञान-वृत्ति-दर्प-दम्भ रूपी भंवर
से पार पाना है कठिन ।
कायांत या शरीर का अंत, अंतअमरत्व स्वाभाविक अवस्था है……
अनश्वरता एक भूल है……..
जिजीविषा का संहार करने वाले काल है शाश्वत सत्य……..
यह सारा सत्य जान कर भी सभी
जगत के मोहरूपी मादक मदिरा में ङूब जाते हैं।





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