एक अोर बहती कलकल गंगा,
तट पर विशाल अश्वत्थ तरु
अौर दूसरी अोर श्मशान काली की
भव्य प्रतिमा, रक्त रंग
जवा पुष्प माला में ।
घाटों पर बाँसों का स्तुप।
राह किनारे बिकते रामनामी…….
गुजरते उस राह से मन वैराग से
…..श्मशान-वैराग्य से भर उठता।
पर कितना विचित्र है यह मन?
संसार की नश्वरता का एहसास
वह क्षणिक वैराग्य
जो श्मशान में संसार की असारता से उत्पन्न होता है,
संसार के मोह-माया में आते, क्षण में हीं
लुप्त भी हो जाता है।
वैराग्य – संसार की असारता।
श्मशान वैराग्य-श्मशान में जाकर हुआ क्षणिक वैराग्य।