ज़िंदगी के रंग -60

मुस्कुराते हुए जीना

भी जीने का है एक अन्दाज़ .

जितना मिला उसमें हीं जी लिए .

ख़्वाहिशो को भूल

चेहरे पर मुस्कुराहट रख

दर्द पी लिए .

फिर भी शिकायत

करने वालों को शिकायत है ,

क्यों तुम हँस कर जी लिए !!!!!

10 thoughts on “ज़िंदगी के रंग -60

  1. डॉक्टर कुंअर बेचैन जी की मशहूर ग़ज़ल याद दिला दी रेखा जी आपने जिसका पहला शेर है : दो चार बार हम जो कभी हँस-हँसा लिए, सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए’ ।

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    1. सटीक शेर !!!! बहुत बार यह एहसास तकलीफ़ पहुँचाती है कि कुछ लोगों को दूसरों की हँसी से ज़्यादा आँसू रास आते है .

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