उम्र और शौक़

18 thoughts on “उम्र और शौक़

  1. सही बात है यह रेखा जी । इसी संदर्भ में डॉक्टर आदर्श मदान जी की एक ग़ज़ल की आरंभिक पंक्तियां हैं : ‘इस विकल वातावरण में मूल स्वर जीवित रखो; पंछियों, उड़ना बहुत है, अपने पर जीवित रखो’ ।

    Liked by 1 person

Leave a comment