चाहो अपने आप को

कोई चाहे ना चाहे ,

तुम तो चाहो अपने आप को .

किसी और की नज़र में अपना मोल तौलने से पहले अपना मोल तो समझो .

वरना ज़िंदगी निकल जाएगी मोल-तोल

चाहने ना चाहने की जद्दो जहद में .

13 thoughts on “चाहो अपने आप को

  1. बहुत अच्छी, सही और दिल में उतारने लायक बात है यह । एक शेर याद आ रहा है जो कुछ हटकर तो लगता है लेकिन आप चाहें तो अपनी इस बात से उसे जोड़कर देख सकती हैं :
    जो हो इक बार वो हर बार हो, ऐसा नहीं होता
    हमेशा एक ही से प्यार हो, ऐसा नहीं होता
    कहीं कोई तो होगा जिसको अपनी भी ज़रूरत हो
    हर इक बाज़ी में दिल ही हार हो, ऐसा नहीं होता

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    1. मुझे अक्सर उलझन रहती है कि मैं अपनी कविताओं में जो कहना चाहती हूँ , वह पढ़ने वालों तक पहुँच रहा है या नहीं ?
      जब आप मेरी कविताओं के मर्म को समझ कर उत्तर देते है तब मुझे बड़ी तस्सली होती है.
      बेहद ख़ूबसूरत शेर के लिए आभार .
      बग़ैर आपसे पूछे इस शेर को ब्लॉग पर share कर रही हूँ .

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