औरत

वो औरत दौड़ कर रसोई तक,

दूध बिखरने से पहले बचा लेती है,

समेटने के कामयाब मामूली लम्हो में,

बिखरे ख्वाबों का गम भुला देती है,

वक्त रहते रोटी जलने से बचा लेती,

कितनी हसरतों की राख उड़ा देती है,

एक कप टूटने से पहले सम्हालती,

टूटे हौसलों को मर्ज़ी से गिरा देती है,

कपड़ो के दाग छुड़ा लेती सलीके से,

ताज़ा जख्मो के हरे दाग भूला देती है,

कैद करती अरमान भूलने की खातिर,

रसोई के एयर टाइट डब्बो में सज़ा लेती है,

कमजोर लम्हो के अफ़सोस की स्याही,

दिल की दिवार से बेबस मिटा लेती है,

मेज़ कुर्सियों से गर्द साफ करती,

कुछ ख्वाबों पर धूल चढ़ा लेती है,

सबके सांचे में ढालते अपनी जिंदगी,

हुनर बर्तन धोते सिंक में बहा देती है,

कपड़ो की तह में लपेट खामोशी से,

अलमारी में कई शौक दबा देती है,

कुछ अजीज़ चेहरों की आसानी की खातिर,

अपने मकसद आले में रख भुला देती है,

घर भर को उन्मुक्त गगन में उड़ता देखने,

अपने सपनों के पंख काट लेती है,

हाँ !

हर घर में एक और है,

जो बिखरने से पहले सबकुछ सम्हाल लेती है..!!

Unknown

20 thoughts on “औरत

  1. औरत वो है जिसे शब्दों मे लिखा नहीं जा सकता,
    वो स्वयं ही एक भाषा है जिसे पूरी तरासे समजा और पढ़ा नहीं जा सकता !! 🙏

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