नोबेल पुरस्कार विजेता ब्राजीली कवियत्री मार्था मेरिडोस की “You Start Dying Slowly कविता के लिए नोबल पुरस्कार मिला था जिस का हिन्दी अनुवाद –
1) आप धीरे-धीरे मरने किधीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
– करते नहीं कोई यात्रा,
– पढ़ते नहीं कोई किताब,
– सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ,
– करते नहीं किसी की तारीफ़।
2) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप
– मार डालते हैं अपना स्वाभिमान,
– नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की।
3) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
– बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के,
– चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे,
– नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार,
– नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग, या
– आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान।
4) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
– नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को, और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को, वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें, और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को।
5) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
– नहीं बदल सकते हों अपनी ज़िन्दगी को, जब हों आप असंतुष्ट अपने काम और परिणाम से,
– अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को,
– अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का,
– अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को, अपने जीवन में कम से कम एक बार, किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की..।
तब आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं..!!

बिलकुल ठीक बात कही है मार्था जी ने । मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल याद आ रही है मुझे : ‘कोई उम्मीद बर नहीं आती, कोई सूरत नज़र नहीं आती; मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यूँ रात भर नहीं आती’ । इसी ग़ज़ल के कुछ शेर इस प्रकार हैं रेखा जी जो मुझे भुलाए नहीं भूलते : ‘आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी, अब किसी बात पर नहीं आती’ और ‘ ‘हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी कुछ हमारी ख़बर नहीं आती’ और ‘मरते हैं आरज़ू में मरने की, मौत आती है पर नहीं आती’ । यह स्थिति दुखद है, दर्दनाक है, विडंबनापूर्ण है लेकिन एक हक़ीक़त है जिससे बहुत से बदनसीब गुज़रते हैं ।
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बङी खूबसूरत ग़ज़ल है। मैं इसे internet पर search करूगीँ। 🙂
नोबल पुरस्कार प्राप्त इस कविता में गहराई है। आपने उदाहरण दे कर इसके अर्थ की व्याख्या कर दी । शुक्रिया।
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