Strength

DarShan's avatarViEwS 4 LiFe

Only a ‘Woman’ has the Strength to Act as if She is Alive

When She has already Died Inside!

#DarShan 😊

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16 thoughts on “Strength

  1. मैं इससे सहमत नहीं रेखा जी । यह शक्ति केवल किसी महिला में ही नहीं, किसी पुरुष में भी हो सकती है । ऐसे कितने ही पुरुष हैं जो घुट-घुट कर जीते हैं, तिल-तिल मरते हैं लेकिन फिर भी बिना उफ़ किए जीते रहते हैं दूसरों के लिए, अपने सामाजिक और पारिवारिक कर्तव्य निभाने के लिए । खेद का विषय है कि नारीवादी विचार और भावनाएं आज वह रूप ले चुकी हैं जिसमें महिलाओं की पीड़ा को समझने वाले तो बहुत-से पुरुष भी हैं, लेकिन किसी पुरुष की पीड़ा को समझ सके, ऐसी महिलाएं विरली ही मिलती हैं । पुरुषों को आज आतताइयों के रूप में ही देखा जाने लगा है और नारियों पर होने वाले अत्याचारों ने उनकी ऐसी ही छवि बना दी है लेकिन पीड़ित तो वे भी हो सकते हैं, आत्म-बलिदानी तो वे भी हो सकते हैं, स्वयं दुख-सहकर दूसरों के लिए जीने की संवेदनशीलता तो उनमें भी हो सकती है ।

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    1. मैंने जब इस Post को reblog किया था, तभी ऐसे किसी उत्तर की अपेक्षा की थी। इस लिये आपका आभार। पहले तो मैं बता दूँ कि मैं समानता में विश्वास करती हूँ 🙂 ना कि नारीवाद में। मेरे समझ में, इस समानता में मात्र नर-नारी नहीं वरन third gender भी शामिल है। क्योंकि वे इस समाज का हिस्सा है। यह हम अपने पौराणिक कथाअों मे भी देख सकते हैं।

      आपकी बातों से मैं पूरी तरह सहमत हूँ। यह सच है कि पुरुष भी बहुत कुछ झेलते हैं। इसलिये समानता महत्वपुर्ण है। अगर आप गौर करेगें तब समाज द्वारा तय पुरुषों व महिलाअों की छवी या fix role इन परेशानियों का कारण है। जैसे – पुरुषों को सामाजिक और पारिवारिक कर्तव्य निभाना हैं लेकिन उफ भी नहीं करना है। महिलाएँ त्याग की मुर्ति होती हैं अादि…….. । दिमाग में बने इस छवी या fix role की वजह से हम सब वैसा व्यवहार करने लगते हैं। जो सामान्य नहीं है। यही समस्या का कारण भी है।

      अब मैं इस quote के बारे में बताना चाहुँगी- गलत मानसिकता के कारण प्रायः अौरतें दबी जिंदगी जीती हैं। उदाहरण के लिये अक्सर विधवाअों को मंदिरों के बाहर परित्यक्त जीवन जीते हुए देखा जा सकता है, पर विधुरों के लिये ऐसी व्यवस्था नहीं है। शायद quote post करने वाले ने ऐसी बातों को इंगित करना चाहा होगा।

      एक बात मैं अौर समझती हूँ – यह लङाई महिला-पुरुष की नहीं, बल्की गलत व्यवस्था अौर मानसिकता की है। दोनों में किसी एक का मजबूत होना समाधान नहीं है। इसका जवाब है – सही सोंच,सही संतुलन 🙂 ।

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    1. Thanks Aanesh !! It means a lot to me.
      I love this kind of discussions, as it helps us to understand the point of view of others.
      I knew its a controversial topic, when i reblogged the post.
      Instead of balm game , we should try to understand the root cause.

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