चाँद The moon

उस रात पूरा  चाँद थोड़ा 

मेरी ओर झुक आया ..

हँसा …..

बोला …..

अब फिर अमावस का अँधेरा मुझे घेरने लगेगा .

पर मैं हार नहीँ मानता कभी .

जल्दी ही पूरा हो कर 

फ़िर आऊँगा …

शब्बा  ख़ैर ! ! ! ! 

19 thoughts on “चाँद The moon

  1. bahut khub…..
    puri taqat lagaakar mujhe haraa do,
    main phir aaunga tab tum naa rahoge,
    sirf main hi rahunga,
    beshak tum phir hamen haraoge,
    magar,
    jyada mat etraanaa,
    kyunki
    main phir aaunga tab tum naa rahoge.

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    1. धन्यवाद सविता ! मुझे लगता है प्रकृति के हर रुप में साकारात्मक संदेश छुपा रहता है।

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  2. क्यों डरे जिंदिगी में क्या होगा हर वक़्त क्यों सोचे के बुरा होगा बढ़ते रहे मंजिल के और हम कुछ भी न मिले तो क्या तजुर्बा तो नया होगा

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    1. वाह!!! आपकी कविता ने दिल जीत लिया। बहुत आभार !!!
      बस ऐसा ही कुछ चाँद भी संदेश देता है – पुर्णिमा से अमावस की अपनी यात्रा से। जीवन भी ऐसा हीं है – सुख-दुख के आने जाने का क्रम के रुप में।

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