कॉमगेट मारू ( सच्चाई पर आधारित मार्मिक कविता)

News 31.7.2017 –Daily News & Analysis Mint office begins sale of commemorative coins on Gandhi, 

Sale of commemorative coins on Gandhi, Komagata Maru incident begins

 

The Komagata Maru incident dates back to May 23, 1914 when the ship carrying 376 passengers, majority of whom were Sikhs, Muslims and Hindus  were denied entry into Canada after an immigration dispute. Some of the passengers were killed in protests on their return to India.

The Government Mint, Mumbai, has started sale of commemorative  coins of Mahatma Gandhi   and the Komagata Maru incident.

(यह भारतीयों की एक मार्मिक कहानी है। “कोमगाटा मारू” जापानी जहाज़ में 376 भारतीय यात्री सवार थे। यह जहाज़ 4 अप्रैल 1914 को निकला। ये भारतीय कनाडा सरकार की इजाज़त से वहाँ पहुंचे। पर उन्हे बैरंग लौटा दिया गया। जब यह वापस भारत पहुँचा तब यहाँ अँग्रजों ने गोलियोँ से उनका स्वागत किया।

सरकारी  टकसाल, मुंबई ने महात्मा गांधी की दक्षिण अफ्रीका और कॉमगेट मारू घटना के शताब्दी को याद करने के लिए स्मारक सिक्के की बिक्री शुरू कर दी है। )

 

सुदूर देशों में ज्ञान बाँटने और व्यवसाय करने,

हम जाते रहें है युगों से।

आज हम फिर, अच्छे जीवन की कामना, गुलामी और

संभावित विश्वयुद्ध के भय से भयभीत।

निकल पड़े अनंत- असीम सागर में,

कॉमगेट मारू जहाज़ पर सवार हो।

चालीस दिनों की कठिन यात्रा से थके हारे,

हम पहुँचे सागर पार अपने मित्र देश।

पर, पनाह नहीं मिला।

वापस लौट पड़े भारतभूमि,

पाँच महीने के आवागमन के बाद

कुछ मित्रो को बीमारी और अथक यात्रा में गवां।

टूटे दिल और कमजोर काया के साथ लौट,

जब सागर से दिखी अपनी मातृभूमि।

दिल में राहत और आँखों में आँसू भर आए।

अश्रु – धूमिल नेत्रों से निहारते रहे पास आती जन्मभूमि – मातृभूमि।

तभी ………………….

गोलियों से स्वागत हुआ हमारा। कुछ बचे कुछ मारे गए।

अंग्रेजों ने देशद्रोही और प्रवासी का ठप्पा लगा ,

अपने हीं देश आने पर, भेज दिया कारागार।

स्वदेश वापसी का यह इनाम क्यों?

 

Source: कोमगाटा मारू ( सच्चाई पर आधारित मार्मिक कविता)

Joy and  Sorrow

​I will find new meaning in every joy and sorrow.

In that silence, I will hear the voice of spirit,

And freed from this world,

I will see another

where the end is another beginning.

 

 

~  Rumi.