मैं एक लड़की ( कविता 1 )

मेरी पाँच कविताएँ / My 5 Poems Published in She The Shakti, Anthology– POEM 4

 

इस दुनिया मॆं मैने
आँखें खोली.
यह दुनिया तो
बड़ी हसीन
और रंगीन है.

मेरे लबों पर
मुस्कान छा गई.
तभी मेरी माँ ने मुझे
पहली बार देखा.
वितृष्णा से मुँह मोड़ लिया

और बोली -लड़की ?
तभी एक और आवाज़ आई
लड़की ? वो भी सांवली ?

Source: मैं एक लड़की ( कविता 1 )

29 thoughts on “मैं एक लड़की ( कविता 1 )

    1. हम विदेशो में हमारे साथ हो रहे रंग भेद की शिकायत करते है. फ़िर कैसे अपनो से यह सब कह सकते है ?

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      1. यही जीवन की सच्चाई है …अपनों के साथ रंग भेद होते हुए देखकर भी चुप्पी साध ली जाती है।

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      2. यह अफसोस की बात है। लङकियों को ऐसी बातो का ज्यादा सामना करना पङता है।

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      3. हम बाते जो भी कर ले , लेकिन अभी भी लड़कियों के प्रति भेदभाव जारी है. धन्यवाद समता अपने विचार लिखने के लिये. 😊

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