वह कौन थी? ( अद्भुत अनुभव )

28 दिसंबर 2014 की सुबह थी। बीते हुए क्रिसमस की खुमारी थी। यहाँ-वहाँ सजावटी सितारे और क्रिसमस-ट्री नज़र आ रहे थे। आनेवाले नव वर्ष का उत्साह माहौल में छाया था। खुशनुमा गुलाबी जाड़ा पुणे के मौसम को खुशगवार बना रहा था। मैं, मेरे पति और पुत्री पुणे से मुंबई जाने के लिए टैक्सी से निकले थे। हल्की ठंड की वजह से हमें चाय पीने की इच्छा हुई। टैक्सी ड्राईवर ने पुणे के महात्मा गाँधी रोड के करीब एक ईरानी रेस्टरेंट के चाय-मस्के की बड़ी तारीफ की। हमारे कहने पर वह हमें वहाँ ले गया।

यह सैन्य क्षेत्र था।यहाँ चारो ओर बड़े-बड़े हरे-भरे पेड़ थे। सड़क के किनारे करिने से पौधे लगे थे। यहाँ की हरियाली भरी खूबसूरती और शांत वातावरण बड़ी अच्छा लगा। पर टैक्सी रुकते ही पास में एक भिखारिन नज़र आई। गंदे ऊँचे स्कर्ट और लटकी हुई शर्ट के ऊपर फटी पुरानी स्वेटर और बिखरे बाल में बड़ी अजीब लग रही थी। बेहद दुबली पतली थी। शायद पागल भी थी। सड़क के किनारे, रेस्टोरेन्ट के बगल में खड़ी थी। उसने नज़र उठा कर हमारी ओर देखा। मैं उससे बचते हुए तेज़ी से दूसरी तरफ से घूमते हुए रेस्टोरेन्ट की तरफ बढ़ी। वह भी शायद जल्दी में थी। अपनी धुन में वह दूसरी ओर बढ़ गई। मैं ने चैन की साँस ली। सड़कों पर ऐसे भीख माँगनेवाले लोग मुझे असहज बना देते हैं। पता नहीं यह भिक्षावृति कब हमारे देश से ख़त्म होगी। किसी भी खूबसूरत जगह पर ये एक बदनुमा धब्बे की तरह लगते हैं। मेरी समझ में नहीं आता है कि इन्हे भीख दे कर इस प्रवृति को बढ़ावा देना चाहिए या डांट कर हटा देना चाहिए?

रेस्टोरेन्ट के अंदर जा कर मैं उस भिखारिन को भूल गई। ईरानी रेस्टोरेन्ट की चाय सचमुच बडी अच्छी थी। मन खुश हो गया। पूरा रेस्टोरेन्ट चाय पीने वाले लोगों से भरा था। गर्मा-गर्म चाय और साथ मेँ मस्का बड़ा लाजवाब था। पर बाहर निकलते ही फिर वही औरत नज़र आई। मैं तेज़ी से कार की ओर बढ़ी। शायद मैं उसे अनदेखा करना चाहती थी।

तभी उसने शुद्ध अँग्रेजी मेँ मुझे आवाज़ दी और कहा- “मैम, मैं बहुत भूखी हूँ। मुझे कुछ पैसे मिल जाते तो मस्का खरीद लेती। मेरे पास चाय है।“ उसने अपने हाथ मे पकड़ी हुई प्लास्टिक की गंदी और टेढ़ी-मेढ़ी बोतल दिखलाई। उसमें चाय थी। उसने फिर शालीनता से सलीकेदार भाषा में अपनी बात दोहराई। मैं अवाक उसे देख रही थी। यह पागल सी दिखनेवाली भिखारिन कौन है? इसकी बोली और व्यवहार तो कुछ और ही बता रही थी। वह पढ़ें- लिखी, किसी अच्छे परिवार की तरह व्यवहार कर रही थी।

मैंने पीछे से आ रहे अपने पति  की ओर देखा अौर उस महिला को कुछ पैसे देने का इशारा किया। उन्होने पॉकेट से कुछ रुपये निकाल कर उस महिला को दे दिए। उस महिला ने मुस्कुरा कर मृदु स्वर में धन्यवाद दिया। फिर मेरी ओर देखा और मेरे खुले बालों की प्रशंसा करते हुए नव वर्ष की शुभ कामना दी और कहा –“हैप्पी न्यु ईयर  !! टेक केयर ….अपना ख्याल रखना।”

कार मेँ बैठते हुए मैंने अपना आश्चर्य प्रकट किया-“ इतनी सलीकेदार महिला इस हालत में क्यों है?” तब टैक्सी ड्राईवर ने बताया कि वह महिला किसी जमाने के वहाँ के अति समृद्ध, डर्बी किंग की पत्नी है। अति-धनी, जुआरी और रेस के शौकीन पति की वजह से उसका यह हश्र हुआ। जुआ सिर्फ महाभारत काल का कलंक नहीं है। आज भी कई निर्दोष परिवारों को इसका मुल्य चुकाना पड़ा है।

उस दिन पहली बार भिक्षावृति का औचित्य समझ आया और लगा कि ऐसे लोगों को मदद करने पर मन मेँ किसी तरह की दुविधा नहीं होनी चाहिये। दरअसल भिक्षावृति प्राचीन काल से जरूरतमंदों, विद्यार्थियों और संतों के आजीविका का साधन रहा है। पर आज-कल यह एक गलत प्रचलन बन गया है। कुछ बेजरूरत लोगों ने इसे पेशा बना लिया है। 

Source: वह कौन थी? ( अद्भुत अनुभव )

29 thoughts on “वह कौन थी? ( अद्भुत अनुभव )

  1. सच कहा आपने—-आज-कल भिक्षाटन को कुछ बेजरूरत लोगों ने पेशा बना लिया है साथ ही कुछ जरूरतमंद को भापकर ऐसे लोगों को मदद करने पर मन मेँ किसी तरह की दुविधा नहीं होनी चाहिये—बहुत खूब कहा आपने👌👌👌👌

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    1. आपने सही कहा, कुछ लोग भिक्षावृती को पेशा बना लेते हैं, इसलिये हम लोग जरुरतमंदो की मदद करने में भी हिचकिचाते हैं।
      बहुत धन्यवाद ।

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  2. Ma’am very beautifully written….. And Yes, I agree with you that people have made pan handling their 2nd business. And, lately I noticed there’re so many kids on street who comes for begging and once I asked one innocent then he said “my parents have send me to collect many coins and notes from people”..

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  3. सच है.. बेजरूरत लोगों का पेशा भर ही बन कर राह गया.. और शायद इसी वजह से हम भिक्षुकों को देख कर रास्ता बदल लेते हैं।

    में जब दिल्ली में नई आयी थी मेरे साथ इसका उल्टा हुआ था।जहाँ मैं काम करती थी वही पास में एक रोज़ेक राजिस्थानी परिवार मिला जिसमे माता-पिता और दो बच्चे थे। उन्होंने बतलाया कि किसिस ने उनका सामान और पैसे चोरी कर लिए इसलिए घर जाने के लिए रुपये इकठ्ठे कर रहे हैं।मैंने 100 रुपये दे दिए.. वही परिवार एक महीने बादमुझे मेरे होस्टल के नज़दीक मिला.. उसी कहानी के साथ.. और दिलचस्प बात ये थी कि वहां भी उनका सामान और पैसे बस 2 दिन पहले चोरी हुए थे। वो मुझे नही पहचान पाए इसलिए अपनी कहानी फिर मुझे सुना दी और जब उनसे सच पूछना चाहा तो वो बंदा रोड क्रॉस करके भाग गया।

    और इससे भी बुरी एक घटना और घटी.. उसके बाद आज तक मैंने किसी कोभीख नही दी… अगर कोइ कहता है मुझे भूखलागि है तो मैं उसे ठेलों से कुछ खिला देती हूं मगर भिखनाही देती

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    1. तुमने जैसी बातों बता रही हो, मैनें भी ऐसी कहानियों का सामना किया है। ऐसी धोखे भरी बातों की वजह से जरुरतमंदों को भी सहायता करने में लोग हिचकिचाते हैं।
      तुम भीख नहीं दे कर उचित करती हो।

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  4. रेखा जी क्या लिखती है आप शानदार लिखा है
    और

    हां,

    ये वक़्त कुछ लोगो को वो करने पर मजबूर कर ही देता है जो वो कभी नही करना चाहते या जो वो सोच भी नजी सकते कि निकट भविष्य में शायद ही कुछ ऐसा होगा लेकिन सब समय के साथ घटित होता है इसलिए सम्मान करें इनका
    बाकी यही कहूंगा कुछ लोग सच मे कलंकित कर रहे है भिक्षावृत्ति को लेकिन कुछ की सच मे मजबूरी में जिसे हम या आप समझ नही सकते

    सिर्फ इतना समझ लीजिए कि आपके सामने एक भिखारी के आने मात्र से आप असहज हो जाते है तो वो खुद क्या महसूस करते होंगे इसलिए बहुत व्यू पॉइंट है इसके कारण है बहुत जानेंगे तो पता चले शायद ……!

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    1. बहुत धन्यवाद शिवम, हमारे देश में भिक्षावृत्ति की परंपरा पुरानी है पर आजकल इसका दुरुपयोग ज्यादा होने लगा है। लोगों ने इसे कमाने का जरिया बना लिया है। मंदिरों, स्टेशन, सड़कों हर जगह भिक्षुकों को देखा जा सकता हैं। जो हमारे देश की इमेज को भी खराब कर रहा है अौर इसलिए जिन्हें वास्तव में मदद की जरूरत है उन्हें भी हम मदद करने के पहले हिचकिचाने लगे हैं।

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      1. जी स्वागत है आपका , अपने बहुत ही सही और सटीक लिखा है

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  5. Well, Rekha, if you look at the word ‘Bhiksha,’ it was not used for charity in ancient times it was something like a tax. There was a difference between Bhikshuk and Yachak. We still used the word Bhikshuk for Buddhist Monks as Bodh bhikshu. The word ‘Daan’ was used for charity.

    I challenge people who think begging is an easy job to beg for one day. There was a reason why Buddhist monks used to beg. Nirvana is about egolessness. And, begging is the first attack on ego. An egoist cannot beg.

    Thanks for the thought-provoking post. Liked your style of narration.

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    1. I agree with you Ravish. Thanks for explaining the meaning of these Hindi words .
      Our ancient culture was really more meaningful. As you said begging was for students, saints, monks and needy people.

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  6. बहुत ही हृदयस्पर्शी अनुभव को हमारे साथ बाँटा है आपने रेखा जी । आभार इसके लिए आपका । सत्य ही मुझे इससे भिक्षुकों के प्रति सोचने का एक नवीन दृष्टिकोण मिला है । प्रत्येक भिक्षुक का तिरस्कार करना उचित नहीं । कोई वास्तव में ही दुर्भाग्य का मारा हो सकता है । ठग समाज को अप्रत्यक्ष रूप से हानि इसी रूप में पहुँचाते हैं कि उनके कारण निर्दोष भी संदिग्ध बन जाते हैं । बाकी उस अभागी लेकिन सुसंस्कृत महिला के जीवन के विषय में जानकर यही लगा कि – ‘सदा ऐश दौरां दिखाता नहीं, गया वक़्त फिर लौट आता नहीं’ ।

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    1. कभी अपने स्कूल की पुस्तक में एक कहानी पढ़ी थी :

      ‘हार की जीत’

      बाबा भारती के घोङे पर डाकू खड़गसिंह का दिल आ गया। छल कर वह गरीब -अपाहिज बन घोङे पर थोङी दूर पहुँचाने का अनुरोध कर सवार हो गया अौर भागना चाहा। बाबा भारती ने उसे आवाज दे कर कहा — बेशक तुम घोङा ले जाअो, पर मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास नहीं करेंगे।

      आज कुछ ऐसी हीं बात हमारे साथ हो गई है। धोखे की वजह से हम ने विश्वास करना छोङ दिया है।
      अपने विचार बाँटने के लिये बहुत धन्यवाद जितेन्द्र जी।

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