लिखती तो मैं पहले भी थी (कविता )

लिखती तो मैं पहले भी थी।

कभी कुछ छप जाता था,

तब खुश हो लेती थी।

कभी लिखे पन्ने रखे-रखे पीले पड़

समय की भीड़ में कहीं खो जाते थे।

धन्यवाद ब्लॉग की दुनिया,

मन की बातें लिखने के लिए…………

इतना बड़ा आसमान और इतनी बड़ी ज़मीन दे दी है ।

ढेरो जाने-अनजाने पाठक और आलोचक,

सबको धन्यवाद।

अब मन की हर बात, हर विचार को,

जब चाहो लिख डालो।

मन में भरे ख़ज़ाने और उमड़ते-घुमड़ते विचारों को

पन्ने पर उतारने की पूरी छूटहै।

लिखती तो मैं पहले भी थी, पर अब लिखने में मज़ा आने लगा है।

Source: लिखती तो मैं पहले भी थी (कविता )

35 thoughts on “लिखती तो मैं पहले भी थी (कविता )

  1. बिलकुल सही लिखा—–
    जमीं भी अपनी आसमान भी अपना है
    लिख दो जब जी चाहे जो लिखना है,
    मन में भरे ख़ज़ाने और उमड़ते-घुमड़ते विचारों को लिखने का,
    ब्लॉग की दुनिया का जहान सारा अपना है ——–बहुत खूब।

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      1. लिखते रहिये पढ़कर कुछ न कुछ सिख ही मिलेगी—–साथ ही ज्ञान का बिस्तार होगा——धन्यवाद।

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  2. एकदम सही, लिखने के बाद छपवाने की कोशिशें हर बार सफल नही होती थीं।ब्लॉग लिखने से सबसे बड़ा फायदा है कि जब मर्ज़ी लिख कर पोस्ट कीजिये, फिर लिखिए फिर पोस्ट कीजिये। लेकिन क्या ये और अच्छा न हो कि हम लोग महीने में एक बार मिलें और अपनी रचनाएँ पढ़ भी लें। नही तो मेरे जैसे लोग लिख तो लेते हैं पर पढ़ने के अवसर न मिलने से खुद को ताउम्र अधूरा महसूस करते हैं।

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    1. कविता पसंद करने के लिये धन्यवाद.
      आपका सुझाव तो अच्छा है. इसके लिये तो और लोगों से बाते करनी होगी.

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  3. ब्लॉग की दुनिया बड़ी निराली है
    आदत इसने एक अच्छी डाली है
    दिमाग मे हो जब तीव्र विचारों का प्रवाह
    तब हाथ मे आये कागज और कलम
    उसी समय शब्दों को लो जोर से पकड़
    वाक्यों मे लो जल्दी से जकड़
    कर लो ये काम फटाफट
    कागज मे वाक्यों को उतार लो झटपट
    क्योंकी आने लगा है लिखने मे मजा
    लेकिन कभी कभी ये आदत भी बन जाती है सजा😊

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    1. कविता का जवाब कविता से देने का आप का अंदाज़ बड़ा निराला और प्यारा है. बहुत बहुत धन्यवाद.
      बड़ी प्यारी कविता है आपकी. 😊😊

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