मेरा शहर-कविता

 आज तक ना जाने

कितने शहरों में रहीं  हूँ,

आज भी बनजारों सा ,

 आजाद परिंदे  जैसा,

भटकना और घूमना पसंद है।

किसी ने पूछा आप का  शहर कौन सा है?

क्या जवाब दूँ, मुझे तो

सारे शहर अपने से लगते हैं ।