
In Turkmenistan (1971) a natural gas field of Methane was found. To prevent the spread of methane gas, geologists set it on fire and it has been burning continuously since then. It is known as the Gate to Hell/ Door to Hell / the Crater of Fire/ Darvaza Crater
तुर्कमेनिस्तान में 1971 में शक्तिशाली ग्रीन हाउस व महत्वपुर्ण उर्जा स्त्रोत गैस ” मीथेन ” का एक बहुत बङा भंङार मिला। संभाल ना पाने पाने पर इसमें आग लगा दिया गया। आज इसे विभिन्न ङरावने नामों से पुकारा जाता है – नरक द्वार / ज्वालामुखी का जलता मुख / नरक के दरवाजे /पाताल का द्वार .
प्रकृति ,धरती अौर सागर,
ने दिया इतना कुछ।
धरा का सीना चीर करते रहे दोहन।
अौर जब संभ्भाल नहीं पाये हम.
तब बचने के लिये लगा दिया आग।
अौर ४० वर्ष से इस जलते धधकते आग के
गोलाकार , ज्वालामुखी के मुख को
हमने दे दिया नाम “नरक का द्वार”
आश्चर्य है, समय-समय यहाँ आने वाली हजारों मकड़ियां,
क्या वे भी हमारी तरह यहां घूमने चली आती हैं?
पर्यटक हैं?
या बनाती हैं हमारी नासमझी का उपहास अौर मातम?
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