
राखी का त्योहार लक्ष्मी जी ने दानव राज बाली को राखी बाँध कर शुरू किया था. दानव राज राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहें थे. नारायण ने राजा बालि की बढ़ती शक्ति को नियंत्रित करने के लिये वामन/ बौना अवतार लिया. बाली दानी राजा था. नारायण ने वामन बन बाली से दान में तीन पग या तीन क़दम धरती माँगी. बाली ने वामन का छोटा आकार देख हामी भर दी. तब नारायण ने विराट रुप ले कर तीन पग में उसकी सारी धरती नाप ली और बाली को पाताल लोक का राज्य रहने के लिये दें दिया l
चतुर बाली ने नारायण की बात मानते हुए अपनी एक कामना पूरी करने का वचन तीन बार – त्रिवाचा लिया. नारायण अपनी सफलता से प्रसन्न हो तीन बार बाली से कह बैठे – “दूँगा दूँगा दूँगा”. तब बलि ने नारायण से कहा – ” मेरे सोने और जागने पर जिधर भी मेरी दृष्टी जाये उधर आप ही नजर आयें. वचनबद्ध नारायण बाली के जाल में फँस चुके थे. वे वहीँ वास करने लगे.
काफी समय तक नारायण के ना लौटने पर लक्ष्मी जी को चिंता हुई. उन्हों ने घुम्मकड नारद जी पूछा -“आप तो तीनों लोकों में घूमते हैं क्या नारायण को कहीँ देखा हैं ?”नारद जी बताया , नारायण तो पाताल लोक में हैं राजा बलि के पहरेदार बन गये हैं. चिंतित और व्यथित लक्ष्मी जी के पूछने पर नारद ने उन्हें राजा बलि को अपना भाई बना रक्षा बंधन बाँध, रक्षा का वचन लेने की सलाह दी. उससे त्रिवचन लेने कहा और रक्षा बंधन के उपहार स्वरूप नारायण को माँगने का सुझाव दिया.
लक्ष्मी सुन्दर नारी बन रोते हुये बलि के पास गई. बाली के पूछने पर उन्हों ने उत्तर दिया -” मेरा कोई भाई नहीँ हैं, जो मेरी रक्षा करे. इसलिए मैं दुखी हूँ .द्रवित हो बलि उन्हें अपनी धर्म बहन बना लिया. उपहार में लक्ष्मी ने जब उसके पहरेदार को माँगा, तब बाली को सारी बातें समझ आई. पर बाली ने वचन का मान रख लक्ष्मी को बहन बनाया और उपहार में नारायण को लौटाया. तब से रक्षाबन्धन का त्योहार शुरू हुआ. आज़ भी जानकार कलावा बाँधते समय यह मंत्र बोलते हैं –
“येन बद्धो राजा बलि दानबेन्द्रो महाबला तेन त्वाम प्रपद्यये रक्षे माचल माचल:”
जैसे महाबली दांनवेंद्र बाली ने वचन का सम्मान कर रक्षा किया, वैसे तुम मेरी रक्षा करो, रक्षा करो. बाली ने दानव होते हुए रिश्ते का मान रखा.

छाया चित्र इन्टरनेट से.

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