हमारा भँवर- पोखर ( यादें और कविता )

मालूम नहीं वहाँ कभी कोई पोखर था या नहीं।

नाम किसी कारण भी हो, पर था सबको प्यारा।

मोटी-मोटी दीवारें, ऊंचें बड़े और भारी दरवाज़े वाला घर।

गोल मोटे खंभे और मोटी लकड़ियों के सहतीरों पर बना

चूना-सुर्ख़ी की मजबूत छतों वाला दो मंजिला घर।

नीचे बड़े लोगों की भीड़, ऊपर बच्चे और उस से ऊपर

पतंग उड़ानेवाले और खेलने-कूदने वाले बच्चों से भरा घर था वह।

ना जाने क्या था उस घर में, लगता था जैसे सभी को खींचता था अपनी ओर।

दो आँगन, और उसके चारो ओर बीसियों कमरे वाला घर।

सब के पास ना जाने कितनी खट्टी- मीठी यादें है उस घर की।

किसी ने नानी से मिलने वाले पैसों से ख़रीदारी सीखी,

तो किसी नें पतंग उड़ाना सीखा।

वहाँ से निकले हर बच्चे ने ऊँचा ओहदा पाया, नाम कमाया ।

ऐसा था मेरा नानी घर।

आज वह घर नहीं है।पर यादें हैं सबके पास।

वही यादें जाग गई है।

एक परिवार का ग्रुप बन कर।

दूर-दूर हो कर भी एक बार फिर हम सब इकट्ठे हो गए हैं।

ऐसा है मेरा नानी घर।

14 thoughts on “हमारा भँवर- पोखर ( यादें और कविता )

    1. हाँ, मेरा नानी घर हो या तुम्हारा दादी घर। क्या फर्क पड़ता है। प्यारा तो सभी को है।

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  1. Bahut hi acha hai!! Purani yaaden taza ho gai!!! Unfortunately the brick n mortar building is not with us but it is in our heart!!!

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  2. Shammi di, mazaa aa gaya padhkar. Thodi der ke liye hum fir Bhawar Pokhar yaani apni dadi ke ghar pahuch gaye they. Thanks Shammi di for the experience.

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    1. u are most welcome. जब चाहो मेरे साथ सैर करो भँवर पोखर का। इसी लिए मेंने इसे मेरा नहीं, हमारा भँवर पोखर कहा है।

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