#BloggerDreamTeam सुंदर बन- राजसी बाघों का साम्राज्य- यात्रा वृतांत ( यात्रा वृतांत )

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हमारी बहुत अरसे से सुंदरबन / वन जाने की कामना थी। हमने पश्चिम-बंगाल, कोलकाता, पर्यटन विभाग द्वारा चलाये जा रहे सुंदरबन सफारी कार्यक्रम का टिक़ट ले लिया। इस कार्यक्रम में रहने, खाने और सुंदरबान के विभिन्न पर्यटन स्थल दिखाने की व्यवस्था शामिल है। इसमें एक गाईड भी साथ में होता है।जो यहाँ की जानकारी देता रहता है। 

इस सफ़ारी के  टिकट अलग अलग कार्यक्रमों में उपलब्ध है। जिसके  टिकटों का  मूल्य 3400 से 7000 रुपये तक ( प्रति व्यक्ति) है। एक रात – दो दिन तथा दो रात तीन दिन के कार्यक्रम होते हैं।यह कार्यक्रम ठंढ के मौसम में ज्यादा लोकप्रिय है। 

बीस फरवरी (20-02-2015) का दिन मेरे लिए खास था।इस दिन  मेरी बेटी चाँदनी का जन्मदिन भी था। उस दिन ही सुंदरबन जाने का कार्यक्रम हमने बनाया । मैं और मेरे मेरे पति अधर सुबह आठ बजे टुरिज़्म सेंटर, बी बी डी बाग, कोलकाता  पहुँचे। वहां से 3-4 घंटे की एसी बस की यात्रा कर सोनाखली पहुँचे। इस यात्रा में हमें नाश्ता और पानी का बोतल दिया गया। सोनाखली पहुँच कर, बस से उतार कर  दस मिनट पैदल चल कर हम नदी के किनारे पहुँचे। जहाँ से नौका द्वारा हमें एम वी (मरीन वेसल) चित्ररेखा ले जाया गया। यह काफी बड़ा जलयान है। इसमें 46 लोगों के रहने और खाने-पीने का पूरा इंतज़ाम है। हमारे ट्रिप में 22 लोग थे। यहाँ से हमारी सुंदरबन जल यात्रा आरंभ हुई।

सुंदरबन  नाम के बारे में अनेक मत है। एक विचार के मुताबिक इसकी खूबसूरती के कारण इसका नाम सुंदरबन पड़ा। इस नाम का एक अन्य  कारण है, यहाँ  बड़ी  संख्या में मिलनेवाले सुंदरी पेड़ । कुछ लोगों का मानना है, यह समुद्रवन का अपभ्रंश है। एक मान्यता यह भी है की यह नाम यहाँ के आदिम जन जातियों के नाम पर आधारित है।

जहाज़ तीन तालों वाला था। निचले तल पर रसोई थी। वहाँ कुछ लोगों के रहने की व्यवस्था भी थी। दूसरे तल पर भी रहने का इंतज़ाम था। ट्रेन के बर्थ जैसे बिस्तर थे। जो आरामदायक थे। सबसे ऊपर डेक पर बैठने और भोजन-चाय आदि की व्यवस्था थी। वहाँ से चरो ओर का बड़ा सुंदर नज़ारा दिखता था। जैसे हम जहाज़ पर पहुँचे। हमें चाय पिलाया गया। दोपहर में बड़ा स्वादिष्ट भोजन दिया गया। संध्या चाय के साथ पकौड़ी का इंतज़ाम था। रात में भी सादा-हल्का पर स्वादिष्ट भोजन था।

सुंदरवन बंगाल का  सौंदर्य से पूर्ण प्राकृतिक क्षेत्र है। यह दुनिया में ज्वार-भाटा से बना सबसे बड़ा सदाबहार जंगल है। यह भारत के पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में है। इसका बहुत बड़ा भाग बंगला देश में पड़ता है। यह अभयारण्य बंगाल के 24 परगना जिले में है।

सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के दक्षिणी भाग में गंगा नदी के सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र में स्थित है। यह एक राष्ट्रीय उद्यान, बाघ संरक्षित क्षेत्र एवं बायोस्फ़ीयर रिज़र्व क्षेत्र है। यह क्षेत्र मैन्ग्रोव के घने जंगलों से घिरा हुआ है और रॉयल बंगाल टाइगर का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है। यह बहुत बड़े क्षेत्र में फैला है।

सुंदरवन यूनेस्को द्वारा संरक्षित विश्व विरासत है । साथ ही प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र है। सुंदरवन तीन संरक्षित भागों में बंटा है – दक्षिण,पूर्व और पश्चिम। सुंदरवन में राष्ट्रीय उद्यान, बायोस्फीयर रिजर्व तथा बाघ संरक्षित क्षेत्र है। यह घने सदाबहार जंगलों से आच्छादित है साथ हीं बंगाल के  बाघों की सबसे बड़ी आबादी वाला स्थान भी है। सुंदरबन के जंगल गंगा, पद्मा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों का संगम स्थल है। यह बंगाल की खाड़ी पर विशाल डेल्टा है। यह सदियों से विकसित हो रहा प्रकृति क्षेत्र है। जिसकी स्वाभाविक खूबसूरती लाजवाब है।

यह विशेष कर रॉयल बंगाल टाइगर के लिए जाना जाता है। 2011 बाघ की जनगणना के अनुसार, सुंदरबन में 270 बाघ थे। हाल के अध्ययनों से पता चला है कि इस राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की संख्या १०३ है। यहाँ पक्षियों की कई प्रजातियों सहित कई जीवों का घर है। हिरण, मगरमच्छ, सांप, छोटी मछली, केकड़ों, चिंराट और अन्य क्रसटेशियन की कई प्रजातिया यहाँ मिलती हैं। मकाक, जंगली सुअर, मोंगूस लोमड़ियों, जंगली बिल्ली, पंगोलिने, हिरण आदि भी सुंदरवन में पाए जाते हैं।

ओलिव रिडले कछुए, समुद्री और पानीवाले सांप, हरे कछुए, मगरमच्छ, गिरगिट, कोबरा, छिपकली, वाइपर, मॉनिटर छिपकली, हाक बिल, कछुए, अजगर, हरे सांप, भारतीय फ्लैप खोलीदार कछुए, पीला मॉनिटर, वाटर मॉनिटर और  भारतीय अजगर भी सुंदरवन में रहतें हैं।

लगभग दो घंटे के जल यात्रा के बाद मिट्टी के एक ऊँचे टीले पर हमें एक विशालकाय मगरमच्छ आराम करता दिखा। कहीं दूर कुछ जल पक्षी- सीगल नज़र आए। वहाँ से आगे हमें सुधन्यखली वाच-टावर पर छोटी नाव से ले जाया गया। ये टावर काफी सुराक्षित बने होते हैं।

सुंदरबान  की वनदेवी प्रतिमा
सुंदरबान की वनदेवी प्रतिमा

प्रत्येक टावर में देवी का एक छोटा मंदिर बना है। दरअसल सुंदरवन के निवासी इस जंगल की देवी की पूजा करने के बाद हीं जंगल में प्रवेश करते हैं। अन्यथा वनदेवी नाराज़ हो जातीं हैं। उनकी ऐसी मान्यता है।

यहाँ ऊँचाई से, दूर-दूर तक जंगल को देखा जा सकता है। यहाँ चरो ओर पाया जाने वाला पानी नमकीन होता है। ज्वार की वजह से समुद्र का पानी नदियों मे आ जाता है। प्रत्येक वाच-टावर के पास जंगली जानवरों के लिए मीठे पानी का ताल बना हुआ है। अतः यहाँ पर अक्सर जानवर पानी पीने आते  हैं। इस लिए वाच टावर के पास जानवर नज़र आते रहते है।

इस टावर पर नदी किनारे की दलदली गीली मिट्टी पर ढ़ेरो लाल केकड़े और मड़स्कीपर मछलियाँ दिखी। मड़स्कीपर मछलियाँ गीली मिट्टी पर चल सकती हैं। ये अक्सर पेड़ों पर भी चढ़ जाती हैं। बिजली रे, कॉमन कार्प, सिल्वर कार्प, कंटिया, नदी मछली, सितारा मछली, केकड़ा, बजनेवाला केकड़ा, झींगा, चिंराट, गंगा डॉल्फिन, भी यहाँ आम हैं। यहाँ मछली मड़स्कीपर और छोटे-छोटे लाल केकड़े भी झुंड के झुंड नज़र आते हैं।

सुंदरवन एक नम उष्णकटिबंधीय वन है। सुंदरवन के घने सदाबहार पेड़-पौधे खारे और मीठे पानी दोनों में लहलहाते हैं। यहाँ जंगलों में सुंदरी, गेवा, गोरान और केवड़ा के पेड़, जंगली घास बहुतायात मिलते है। डेल्टा की उपजाऊ मिट्टी खेती में काम आती है।

वाच टावर के पास बने मीठे पानी का ताल और  हिरण
वाच टावर के पास बने मीठे पानी का ताल और हिरण

वाच-टावर से जंगल में कुछ हिरण, बारहसिंगा और पक्षी नज़र आए। यहाँ नीचे से ऊपर निकलते जड़ों को पास से देखने का मौका मिला। यहाँ के मैन्ग्रोव की यह विशेषता है। ज्वार-भाटे की वजह से पेड़ अक्सर पानी में डूबते-निकलते रहते हैं। अतः यहाँ के वृक्षों की जडें ऑक्सीजन पाने के लिए कीचड़ से ऊपर की ओर बढ़ने लगती हैं। जगह-जगह पर मिट्टी से ऊपर की ओर निकली काली नुकीली जड़ें दिखती हैं।

2-3 घंटे बाद हम यहाँ से आगे एक ओर वॉच टावर- सजनेखली पर पहुँचे। जहाँ जंगली सूअरों का झुंड दिखा। साथ ही गोह, बंदर, हिरण और कुछ पक्षी दिखे।

रात हो चली थी। डेक पर बैठ कर गाना और कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम में शाम अच्छी कटी। बंगाल के संस्कृतिक जीवन पर सुंदरबान का गहरा प्रभाव है। सुंदरवन वन तथा उसके के देवी-देवताओं का प्रभाव यहाँ के अनेक साहित्य, लोक गीतों और नृत्यों में स्पष्ट दिखता है।

रात में जहाज़ एक जगह पर रोक दिया गया। दुनिया से दूर अंधेरे में, जहाँ चारो ओर पानी ही पानी था। एक अजीब सा एहसास था, वहाँ पर रात गुजरना। अगले दिन सुबह-सुबह ही एक अन्य वाच टावर- दोबांकी जाना था। अतः मैं 5 बजे सुबह उठ कर नहा कर तैयार हो गई। वहाँ की सारी व्यवस्था अच्छी थी। पर बाथ रूम  छोटे थे और अपेक्षित सफाई नहीं थी।

सुबह की चाय पीने तक हम वाच-टावर पहुँच गए थे। यह टावर विशेष रूप से बाघों का क्षेत्र था। हिरण, बंदर जैसे जानवर तो दिखे। पर बाघ नहीं नज़र आया। आज के समय में बाघ एक दुर्लभ प्राणी है और यहाँ पर भी कभी-कभी हीं दिखता है। बाघ के हमलों सुंदरवन के गाँव में अक्सर सुनने में आता है। लगभग 50 लोग हर साल बाघों के हमले से मारे जाते हैं।

यहाँ पर सुंदरबान संबन्धित एक दर्शनीय म्यूजियम है और रहने के लिए कमरे भी है। इन कमरों की बुकिंग पहले से करना पड़ता है। यहाँ हमने सुंदरी के पेड़ और यहाँ पाये जाने वाले अन्य वृक्षों को निकट से देखा।

दोबांकी वाच टावर का गेस्ट हाऊस
दोबांकी वाच टावर का गेस्ट हाऊस

वहाँ से लौटते-लौटते दोपहर हो रही थी। हमें गरमा गरम भोजन कराया गया। अब हमें वापस सोनाखलीले जाया गया। वहाँ से हमें बस द्वारा वापस कोलकाता पहुंचाया गया। रास्ते में हल्का नाश्ता उपलब्ध करवाया गया।

दो दिन और एक रात जलयान पर जंगलों और नदियों के बीच गुज़ारना मेरे लिए एक नया अनुभव है। यहाँ शहर का शोर-शराबा

 नहीं होता है, बल्कि प्रकृति की सौंदर्य  का अनुभव होता है। नदियों के जल की कलकल , पक्षियों के कलरव और जंगल की सरसराहट इतने स्वाभाविक रूप से मैंने अपने  जीवन  में कभी अनुभव नही किया था।  

क अद्भुत, खूबसूरत यात्रा समाप्त हुई। यह एक यादगार और खुशनुमा यात्रा थी।

#BloggerDreamTeam – Food & Travel Carnival

TRAVEL – Unforgettable travel story.

देवदासी – जगन्नाथ मंदिर

आज (20.3.2015) के अख़बार ‘दी इंडियन एक्स्प्रेस’ के पृष्ठ दो पर एक खबर पढ़ने को मिली – “ भगवान जगन्नाथ की अंतिम पत्नी की मृत्यु”। शशिमणी देवी, अंतिम जीवित महरि की मृत्यु 93 वर्ष के उम्र में हो गई। उनके माता-पिता ने 7 वर्ष की आयु में साड़ी बंधन समारोह के द्वारा उनका विवाह भगवान जगन्नाथ से कर दिया था।

महरि उन देवदासियों को बुलाया जाता है, जो ओडिशा के भगवान जगन्नाथ के मंदिर में नृत्यप्रस्तुत करती थीं। महरि नृत्य लगभग एक सहस्राब्दी पुराना है। बारहवीं सदी में गंगा शासकों ने देवता के लिए इस नए समारोह की शुरुआत की थी। फिर यह जगन्नाथ मंदिर में दैनिक अनुष्ठान का एक अभिन्न हिस्सा बन गया। अनेक परिवार के लोग अपनी पुत्रियों की शादी बचपन में भगवान जगन्नाथ के साथ कर देते थे। ये देवदासियां आजीवन इस मंदिर से जुड़ी रहतीं थीं।

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान जगन्नाथ को खुश करने के लिए जयदेव के गीत गोविन्द पर महरि नृत्य प्रस्तुत किया जाता था। नर्तकियों को विशेष गहने, विशेष रूप से बुनी साड़ी और फूलों से सजाया जाता था।

स्वतंत्र भारत में देवदासी प्रणाली के उन्मूलन के बाद यह नृत्य जगन्नाथ मंदिर में बंद कर दिया गया। अब महरि नृत्य को ओडिसी के शास्त्रीय नृत्य रूप में एक सम्मानजनक दर्जा दे दिया गया है। यह मंच पर नृयांगनाओं द्वारा प्रस्तुत किया जाता है ।

हमारा भँवर- पोखर ( यादें और कविता )

मालूम नहीं वहाँ कभी कोई पोखर था या नहीं।

नाम किसी कारण भी हो, पर था सबको प्यारा।

मोटी-मोटी दीवारें, ऊंचें बड़े और भारी दरवाज़े वाला घर।

गोल मोटे खंभे और मोटी लकड़ियों के सहतीरों पर बना

चूना-सुर्ख़ी की मजबूत छतों वाला दो मंजिला घर।

नीचे बड़े लोगों की भीड़, ऊपर बच्चे और उस से ऊपर

पतंग उड़ानेवाले और खेलने-कूदने वाले बच्चों से भरा घर था वह।

ना जाने क्या था उस घर में, लगता था जैसे सभी को खींचता था अपनी ओर।

दो आँगन, और उसके चारो ओर बीसियों कमरे वाला घर।

सब के पास ना जाने कितनी खट्टी- मीठी यादें है उस घर की।

किसी ने नानी से मिलने वाले पैसों से ख़रीदारी सीखी,

तो किसी नें पतंग उड़ाना सीखा।

वहाँ से निकले हर बच्चे ने ऊँचा ओहदा पाया, नाम कमाया ।

ऐसा था मेरा नानी घर।

आज वह घर नहीं है।पर यादें हैं सबके पास।

वही यादें जाग गई है।

एक परिवार का ग्रुप बन कर।

दूर-दूर हो कर भी एक बार फिर हम सब इकट्ठे हो गए हैं।

ऐसा है मेरा नानी घर।