हैलो गौरया (20 मार्च, विश्व गौरया दिवस पर )

हैलो गौरया, आज तुम्हारा दिन है।

कहाँ खो गई थी तुम कि तुम्हें याद करना पड़ता है।
अब तो तुम हर दिन मेरे घर दाना खाने आती हो

पानी पी कर फुर्र से उड़ जाती हो।

शायद हम ने हीं तुम्हारे रहने के जगह छीन लिए है।

वरना तुम तो रोशनदानों और पंखों के ऊपर भी घर

बसा लेती थी। तुम्हारी ची-ची, चूँ-चूँ की झंकार

अच्छी लगती है। छिछले पानी में नहाती हो,

छोटे- छोटे चोंच से अपने पंख संवारती और

सुखाती हो। फिर फुर्र से उड़ जाती हो।

#SurnameChangeनाम में क्या रखा है? ( Blog related topic )

नाम में क्या रखा है? अक्सर शादी के बाद नाम बदलने / नया उपनाम जोड़ने के समय कहा जाता है। पर जानते हैं  सच्चाई क्या है? कहा जाता है कि किसी भी व्यक्ति को सबसे प्यारा शब्द अपना नाम लगता है।

इस संबंध में मुझे अपनी एक सहेली की बात याद आती है। शादी के बाद कुछ ही वर्षों में उसका पति से अलगाव हो गया। उसका तलाक का केस चल रहा था। वह अपने पति को बेहद नापसंद करती थी। उसने ऐसे में मुझ से एक ऐसी बात कही। जो मैं आज भी भूल नहीं पाई हूँ। उसने मुझसे कहा – ‘ जिस आदमी की वजह से मेरे जिंदगी बर्बाद हुई मुझे उसका उसका नाम  / सरनेम ढोना पड़ रहा है”।

यह विडम्बना ही है ना कि शादी अर्थात नया सरनेम। आप चाहो या ना चाहो। कुछ दिनो पहले मेरे बचपन की सहेली लिली ने लगभग 36 वर्षों बाद मुझे खोज निकाला और फेस -बुक मैसेंजर पर मेसेज भेजा। नाम जाना हुआ था। पर सरनेम नया होने से मैं काफी देर तक दुविधा में रही। और एक अन्य सहेली ने तो उस ठीक से न पहचान पाने के कारण फेस बुक में स्वीकार / एक्सेप्ट ही नहीं किया।

ऐसा महिलाओं के साथ ही क्यों? यह सवाल अक्सर मन में आता है। यह  व्यवस्था कुछ सोच कर बनाई गई होगी । पहले शायद ऐसा इसलिए रहा होगा क्योंकि महिलाएं घर के भीतर चारदीवारों में रहती थीं। अतः परेशानी नहीं होती होगी। पर आज समाज का स्वरूप बादल गया है। महिलाओं की अपनी एक पहचान हो गई है। पर प्रथा पुरानी हीं चल रही है।

मैं बहुत अरसे से एक पुरानी सहेली को फेस बुक पर खोजने का नाकामयाब प्रयास कर रहीं हूँ। अपनी अन्य सहेलियों से भी पूछ रहीं हूँ। सबका एक ही प्रश्न है – उसका नया सरनेम क्या है?

आज-कल एक नया चलन हो गया है दोनों उपनामों को लगाना। अपना पुराना और पति का नया उपनाम जोड़ दिया जाता है। जैसे ऐश्वर्या राय बच्चन या क़रीना कपूर खान। पर सोचिए जरा दो या तीन जेनरेशन के बाद हमारी बेटियों के नाम में कितने उपनाम जुट चुके होंगे। पर इसका उपाय क्या है?