पेड़ और पर्वत के अस्तित्व की कहानी ( पर्यावरण धारित प्ररेरक कविता )

                 IMG_20150210_122430013

पहाड़ पर विशाल बरगद का पेड़ हवा में झूम रहा था। वृक्ष लाल पके फलों से लदा था। तभी एक पका फल घबरा कर पेड़ को पुकार उठा। जरा धीरे हिलो। वरना मैं गिर पड़ूँगा। वृक्ष मुस्कुरा कर रह गया।
तभी झुंड के झुंड, हरे पंखों वाले तोते उसी डाल पर आ कर बैठ गए। डाली बड़ी ज़ोरों से लचक गई। फल फिर घबरा कर चिल्ला उठा ‘मुझे बचाओ, मैं नीचे गिर पड़ूँगा’। तभी एक तोते ने डरे-सहमे फल पर चोंच मारा। जिस बात का ड़र था, वही हुआ। बेचारा फल डाल से टूट कर नीचे गिरने लगा। पेड़ को उसने फिर आवाज़ दिया –“ मुझे बचाओ”। पेड़ ने स्वभाविकता से जवाब दिया। “यही जिंदगी है, अब अपने बल पर जीना सीखो”।
फल एक धूप से तपते चट्टान पर गिर कर बोला- “मैं अभी बहुत छोटा हूँ और यह चट्टान बहुत गरम है यहाँ तो मैं सुख कर खत्म हो जाऊंगा। ”। पेड़ ने जवाब दिया- “दरार के बीच की चुटकी भर मिट्टी से दोस्ती करके तो देखो”। वह लुढ़क कर वृहत चट्टान के बीच के दरार में जा छुपा
मौसम बीता, समय बीता। फल के अंदर के बीज़ धीरे-धीरे अंकुरा गए। एक नन्हा पौधा चट्टान पर जड़े पसारते बड़ा हो गया। उसकी लंबी जड़ें चट्ट्नो से लटक गई। जड़ें आगे बढ़ कर मजबूती से मिट्टी में समा गई। अब नन्हा पौधा पूरे शान से वृक्ष बन कर खड़ा था।
एक दिन पुराने बरगद ने आवाज़ दिया- “याद है वह दिन। जब तुम कदम-कदम पर मदद के लिए मुझे आवाज़ देते थे? देखो आज तुम अपने बल पर कितने बड़े और शक्तिशाली हो गए हो। इसलिए डरने के बदले अपने-आप पर विश्वास करना जरूरी है।
नए पेड़ ने हामी भरी और कहा- “हाँ तुम्हारी बात तो सही है। पर क्या तुमने कभी यह सोंचा की मेरे यहाँ उगने से बेचारे चट्टान को इतने बड़े दरार का सामना करना पड़ा”। तभी नीचे से चट्टान की आवाज़ आई – “ नहीं दोस्त, हम सभी का अस्तित्व तो एक दूसरे के बंधा है। हमारे बीच का यह दरार तो पुराना है। तुमने और तुम्हारी जड़ों ने तो हमें बांध कर रखा है। तुमने हमें तपती धूप और बरसते बौछारों से बचाया है। यह पूरा पर्वत ही तुम वृक्षो की वजह से कायम है।
नए पेड़ को पुराने पेड़ की बातों महत्व अब समझ आया। हम भी छोटी-छोटी बातों से घबरा कर औरों से मदद की उम्मीद लगाने लगते हैं। हमें अपने पर विश्वाश करने की आदत बनानी चाहिए।

Leave a comment