मेरे हाथों में है चमचमाता नया स्मार्ट फोन। मैं हैरानी से उसे निहार रहीं हूँ। मन में खयाल आ रहें हैं- “क्या यह सचमुच मुझे स्मार्ट बना देगा”? पर यह क्या? मैं तो उसमें ही उलझ कर रह गई हूँ।
इसके बटन जरा सा छु जाने पर फोन कहीं का कहीं लग जाता है। फोन देख कर जितनी खुशी हुई। उसे काम में लाने में उतनी हीं उलझन हो रही है। मुझे अपना पुराना फोन याद आने लगा। उस पर हाथ बैठा था। मुझे उसका अभ्यास था। अतः काम करना आसान लगता था।
मुझे पुराने दिन याद आने लगे। फोन की दुनिया में बड़ी तेज़ी से बदलाव आए हैं। कुछ दशकों पहले तक कुछ ही घरों में फोन हुआ करते थे। वह भी तार से जुटे, डायल करने वाले फोन होते थे। दूसरे शहर फोन करना हो तो कॉल बुक करना पड़ता था। घंटो इंतजार के बाद बात होती थी। कुछ समय बाद सभी शहरों के कोड नंबर आ गए। जिसकी सहायता से फोन लगता था। पर यह भी आज के जैसा सुविधाजनक नहीं था। यात्रा के दौरान तो फोन करने की बात सोची भी नहीं जा सकती थी।
हाल के वर्षों में फोन की दुनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। विज्ञान का एक अद्भुत चमत्कार सामने आया। मोबाइल फोन उपलब्ध हो गए। वह भी ऐसा कि मुट्ठी में समा जाये। ना लंबी तार, ना डॉयल करने की मुसीबत। जहां चाहो , जब चाहो, जिससे चाहो बातें कर सकते है। सारी दुनियाँ ही सिमट कर करीब लगने लगी।
पर हाँ, जब सामन्य मोबाईल फोन हाथ में आया तब भी वही उलझन हुई। जो आज हो रही है। तब भी लगा था कि इसे काम में लाना सीखना होगा। पर ये फोन इतने सहज-सरल होते है कि सीखने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई थी। इस बात को याद कर मुझे बड़ी तस्सली हुई। चलो इसे भी मैं सीख लूँगी। पर फिर भी अपने स्मार्ट फोन को काम में लाने में घबराहट हो रही थी- कही मैं गलत तरीके से चला कर इस बिगाड़ ना दूँ। फिर मन में ख्याल आया- कही मुझमें परिवर्तन से बचने की प्रवृती का भाव (Change resistance) तो नहीं आ रहा है? नहीं-नहीं, यह तो बड़ी अफसोस की बात होगी।
मेरा स्मार्ट फोन से पहला परिचय तब का है। जब कुछ समय पहले मेरी छोटी बेटी नें इंजीनियरिंग कॉलेज में अपना प्रोजेक्ट स्मार्ट फोन एप पर आधारित बनाया था। साथ ही पहला पुरस्कार भी पाया था। तभी से मेरे मन में इस फोन की लालसा थी। आज जब यह फोन मेरे हाथों में है। तब ऐसे घबराना ठीक नहीं है।
मैंने अपने आप से कहा- कोशिश करनी होगी। मैं इसे कर सकती हूँ। मैंने प्यार से अपने स्मार्ट फोन को हाथों में उठाया। और यह क्या? यह तो पहले के फोन से भी सरल- सहज है। इसे आज के समय में दोस्ताना फोन या युजर फ्रेंडली कहेंगे।
अब समझ आया इसे स्मार्ट फोन क्यों कहते हैं। इससे बैठे-बैठे बातें करो या खरीदारी। अपने मेल देखो या व्हाट्स एप पर ग्रुप बना कर पूरे परिवार और मित्रों के करीब आ जाओ। । कोई भी एप डाउन लोड कर लो, और बैठे-बिठाये पूरी दुनिया अपने पास ले आओ। ब्लॉग लिखो या पढ़ो। यह तो हर काम को आसान कर देता है।
अब तो हाल यह है कि सोते-जागते मैं अपना स्मार्ट फोन अपने करीब रखतीं हूँ। मैं सचमुच स्मार्ट बन गई हूँ।
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