सीमेंट की एक बोरी (यात्रा अनुभव )

जब हम किसी काम के लिए सीमेंट की बोरी लाते हैं। तब कभी उसे इतिहास के बारे में नहीं सोचते हैं। पर इसका भी एक लंबा इतिहास होता है। सीमेंट एक लंबी प्रक्रिया के बाद तैयार होता है। भारत विश्व में सबसे अधिक सीमेंट बनाने वाले देशों की सूची में दूसरे स्थान पर है।

अभी हाल में मुझे एक पूरी तरह से स्वचालित सिमेंट प्लांट देखने का अवसर मिला। यह प्लांट है – टॉपसेम सीमेंट या मेघालय सीमेंट लिमिटेड। स्वचालित तरीके से सीमेंट बनते देखना अपने आप में अद्भुत अनुभव है।

यह प्लांट असम के गौहाटी शहर में है। यह शहर से थोड़ा हट कर स्थित है। टॉपसेम सीमेंट प्लांट में हम लोग 10 फरवरी 2015 की सुबह लगभग 9:30 में पहुँचें। वहाँ के वी पी श्री राजेश रंजन ने पूरी फ़ैक्टरी दिखाई। उन्होने बड़े अच्छे तरीके से विस्तार से सीमेंट बनने की प्रक्रिया बताई। साथ ही मशीनों की कार्य प्रणाली बताई। सीमेंट बनने की पूरी कहानी बड़ी रोचक लगी।

यह सीमेंट प्लांट काफी बड़े दायरे में फैला है। यहाँ विशालकाय मशीनें लगी हैं। अलग-अलग आकार और नाप की मशीने लगी हैं । जो लगातार, बिना रुके काम कर रहतीं हैं । यहाँ के कामगारों, कर्मचारियों तथा अधिकारियों के रहने की अच्छी व्यवस्था है। साथ ही मेहमानो के लिए गेस्ट-हाऊस की भी व्यवस्था है। यह फैक्टरी पंद्रह वर्ष से सीमेंट उत्पादन कार्य में लगी है।

सीमेंट पर्वतों से लाये क्लिंकर, एश/ राख़ आदि मिला कर बनते हैं। इन सब को अलग-अलग स्थानों से मंगाया जाता है। निर्धारित मात्रा में इन सब को बड़ी-बड़ी मशीनों में पिसा और मिलाया जाता है। कच्चे माल चूना पत्थर आदि खनन के द्वारा प्राय पहाड़ों से प्राप्त किया जाता है। वहाँ से इन्हे ट्रकों के द्वारा सीमेंट प्लांट में लाया जाता। इन

(Look Up Stories ) मेरा घर ( blog related)

जिंदगी की गाड़ी ठीक-ठाक चल रही थी। बच्चे पढ़ाई में व्यस्त थे। हम पति और पत्नी अपने-अपने नौकरी में खुश थे। पति का जहां भी तबादला होता। वहीं किराए का घर ले कर आशियाना बसा लेते थे। चिड़ियों की तरह तिनका-तिनका सजाने लगते थे।

जिंदगी अच्छी कट रही थी। सिनेमा देखना, बाहर घूमने जाना, गोलगप्पे और चाट खाना, बच्चों के रिजल्ट निकलने पर उनके स्कूल जाना जैसी बातों में मगन थे हम सब। बच्चों की खिलखिलाहटों के साथ हम भी हँसते। उन्हें एक-एक क्लास ऊपर जाते देखना सुहाना लगता। बड़ी बेटी इंजीनियरिंग कॉलेज में पहुँच गई थी। छोटी बेटी भी ऊँची कक्षा में चली गई थी। पढ़ाई का दवाब और खर्च दोनों बढ़ गए थे। बच्चों की हर उपलब्धि मन में खुशियाँ भर देती थी। ये सब खुशियाँ ही इतनी बड़ी लगती कि इससे ज्यादा कुछ चाहत हीं नहीं होती थी। ना हमारे ज़्यादा अरमान थे, ना कोई लंबा चौड़ा सपना था। हम अपने छोटे-छोटे सपनों को पूरा होते देख कर खुश थे।

ऐसे में एक दिन बड़ी बेटी ने पूछा – “मम्मी, हमारा अपना घर कौन सा है? हमें भी तो कहीं अपना घर लेना चाहिए”। मैं और मेरे पति चौंक पड़े। हमारा घर? यह तो हमने सोचा ही नहीं था। किराये के घर को हीं अपना मान लेने की आदत पड़ गई थी।
मन में एक बड़ा सपना जाग उठा। एक अपने घर की चाहत होने लगी। पर जब हमने इस बारे में सोचना शुरू किया। तब लगा कि हमारे आय में एक अच्छे घर या फ्लैट की गुंजाइश नहीं है। बच्चों की पढ़ाई में काफी खर्च हो रहा था। घर के और ढेरों खर्च थे। कुछ पारिवारिक जिम्मेदारियाँ भी थीं।

काफी सोंच-विचार के बाद हमने बैंक लोन के लिए बात किया। दो कमरे का खूबसूरत प्यारा सा फ्लैट पसंद भी आ गया। पर हर महीने कटने वाला बैंक इन्स्टाल्मेंट हमारे बजट से कुछ ज्यादा हो रहा था। घर के खर्चों में काफी कटौती के बाद भी कठिनाई हो रही थी। कभी-कभी मेरे पति झल्ला उठते। उन्हें लगता कि मैं कुछ ज्यादा बड़ी उम्मीदें पालने लगी हूँ। अपना घर लेना हमारे बूते से बाहर है। तभी मेरे पति की तरक्की हो गई और तनख़्वाह में भी इजाफ़ा हुआ। इससे हमारी समस्या खत्म तो नहीं हुई। पर आसानी जरूर हो गई। हमने फ्लैट बुक कर लिया।

कुछ समय पैसे की थोड़ी खिचातानी और घर के खर्चों में परेशानी जरूर हुई। पर जल्दी ही मालूम हुआ की घर के ऋण पर मेरे पति को  आयकर  में कुछ छूट मिलेगा  और हमारी  बैंक इन्स्टाल्मेंट की समस्या लगभग  खत्म हो गई। कुछ समय में हमारा फ्लैट मिल गया। गृह प्रवेश की पूजा के दिन आँखों में खुशी के आँसू भर आए। लगा आज हमारा बहुत बड़ा सपना पूरा हो गया।
इस खुशी में एक और बहुत बड़ी खुशी यह थी कि हमारी बड़ी बेटी की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी और उसे वहीं नौकरी मिल गई थी। जहाँ हमारा फ्लैट है। छोटी बेटी का भी वहीं इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला हो गया। दोनों बहने अपने नए घर में रहने लगीं। हम दोनों भी अक्सर वहाँ छुट्टियां बिताने लगे। अपने घर में रह कर हम सभी कॉ बड़ी आत्मसंतुष्टि होती।

बड़ी बेटी की शादी के बाद हमने घर किराये पर दे दिया है। सच बताऊँ तो, हमारा घर आज हमारा एक कमाऊ सदस्य है। उससे आने वाला किराया हमारे बहुत काम आता है। जब भी अपना घर देखती हूँ। मन में बहुत बड़ी उपलब्धि का एहसास होता है। जल्दी ही पति के रिटायरमेंट के बाद हम अपने सपनों के घर में जाने वालें हैं। मेरे पति अक्सर कहते है- “ यह घर तुम्हारे सपने और सकारात्मक सोंच का नतिज़ा है।

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