मैं और मेरे पति अधर कोलकाता के न्यू मार्केट में घूम रहे थे। बाज़ार में भीड़ और चहल-पहल थी। बगल में था होग मार्केट। कपड़े, जूते, चप्पल, बैग और ढेरो समान से बाज़ार भरा था। यह बाज़ार ऐसा है, जहाँ पैदल घुमने का अपना मज़ा है। पर काफी चलने के बाद थकान हो गई। तब मेरे पति अधर नें रिक्शा लेने का सुझाव दिया और एक रिक्शेवाले से बातें करने लगे। कोलकाता के ऊँचे और बड़े-बड़े चक्कों वाले रिक्शे मुझे देखने में अच्छे लगते हैं। पर किसी व्यक्ति द्वारा पैदल रिक्शा खीचना मुझे अच्छा नहीं लगता है। अतः मैंने रिक्शे पर बैठने से मना कर दिया। रिक्शेवाला मेरी इन्कार सुन कर मायूस हो गया। उसे लगा कि मैं पैसे की मोल-मोलाई कर रही हूँ। उसने मुझसे कहा- “ दीदी, पैसे कुछ कम दे देना। मैंने बताया कि पैसे की बात नहीं है। किसी व्यक्ति द्वारा पैदल रिक्शा खीचंना मुझे अच्छा नहीं लगता । तब रिक्शे वाले ने ऐसी बात कही, जो मेरे दिल को छु गई और मैं चुपचाप रिक्शे पर बैठ गई। उम्रदराज, दुबला-पतला, सफ़ेद बालोंवाले रिक्शा चालक ने कहा- “ यह तो मेरा रोज़ का काम है। हमेशा से मैंने यही काम किया है। अब मैं दूसरा कोई काम कर भी नहीं सकता। यही मेरी कमाई का साधन है। आप बैठेंगी तो मेरी कुछ कमाई हो जाएगी। वरना कोई दूसरी सवारी का इंतज़ार करना होगा।पैसे तो मुझे कमाने होंगे। पता नहीं कब हमारे देश से गरीबी कम होगी? लोगों को रोजगार के अच्छे अवसर कब प्राप्त होगें?