15 फरवरी, रविवार, 2015,
कोलकाता से सुबह लगभग आठ बजे हम सब कार से गंगासागर जाने के लिए निकले। यह यात्रा हमारे मित्र श्री राहुल पवार और उनकी पत्नी श्रीमती सीमा पवार के सौजन्य से संभव हुआ। उन्होने यह कार्यक्रम पहले से बना रखा था। उनके आमंत्रण पर अधर और मैंने उनके साथ अपना कार्यक्रम बना लिया। यह दूरी रेल या बस द्वारा भी तय किया जा सकता है।
गंगासागर या सागरदीप गंगा नदी और बंगाल की खाड़ी का मिलन स्थल है। यह पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में पड़ता है। गंगासागर वास्तव में एक टापू है। जो गंगा नदी के मुहाने पर है। यहाँ काफी आबादी है। यह पूरी तरह से ग्रामीण इलाका है। यहाँ की भाषा बंगला है। यहाँ पर रहने के लिए होटल मिलते है। साथ ही विभिन्न मतों के अनेकों आश्रम भी है। गंगासागर एक पवित्र धार्मिक स्थल है। जहां मकर संक्रांति के दिन 14 व 15 जनवरी को वृहत मेला लगता है। जिसमें लाखों लोग स्नान और पूजा करने आते हैं। ताकि उनके पाप धुल जाये और आशीर्वाद प्राप्त हो। यह एक पुण्यतीर्थ स्थान है।
हम सभी सड़क मार्ग से गंगासागर जाने के लिए कोलकाता से डायमंड हार्बर होते हुए लगभग 98 किलोमीटर दूर काकदीप पहुँचे। यहाँ से घाट या जेट्टी तक जाने का 10 मिनट का पैदल मार्ग है। जो बैट्री चालित कार या खुले ठेले पर बैठ कर भी पहुँचा जा सकता है। यहाँ गंगा / हुगली नदी को पार करना पड़ता है। काकदीप से पानी के जहाज़ के द्वारा आधे घंटे की यात्रा के बाद हम कचूबेरी घाट पहुँचे। जहाज का टिकिट मात्र आठ रुपए हैं। जहाज़ पर 30 मिनट की यह यात्रा बड़ी सुहावनी है। जल पक्षियों के झुंडों को देखने और दाना डालने में यह समय कब निकाल जाता है, पता ही नहीं चलता है। ये पक्षी भी अभ्यस्त है। दाना फेकते झुंड के झुंड पक्षी हवा में ही दाना पकड़ने के लिये झपटते हैं। बड़ा मनमोहक दृश्य होता है। इन जहाजों का आवागमन ज्वार-भाटे पर निर्भर करता है। ज्वार-भाटे के कारण जल धारा की दिशा बदलती रहती है। जब जल प्रवाह सही दिशा में होता है तभी ये जहाज़ परिचालित होते है। अन्यथा ये सही समय का इंतज़ार करते हैं।
कचूबेरी घाट पहुँच कर बस, कार या जुगाड़ से आगे की यात्रा की जा सकती है। यहाँ से गंगासागर / सागरद्वीप लगभग 32 किलोमीटर दूर है। बस वाले 20 रुपये प्रति व्यक्ति लेते है और पूरी टॅक्सी का किराया 5 से 6 सौ रुपये हैं। मार्ग में यहाँ के गाँव नज़र आते हैं। ये मिट्टी की झोपड़ियों और तालाबों वाले ठेठ बंगाली गांव होते है। सड़क के दोनों तरफ हरे-भरे खेत, नारियल के लंबे पेड़, बांस के झुरमुट और केले के पौधे लगे होते हैं। काफी जगहों पर पान की खेती भी नज़र आती है।
गंगासागर पहुँच कर कपिल मुनि का मंदिर नज़र आती है । सामने एक लंबी सड़क जल प्रवाह की ओर जाती है। जिसे पैदल या ठेले पर जाया जा सकता हैं। सड़क के दोनों ओर पूजन सामाग्री की दुकाने है। यहाँ पर भिक्षुक और धरमार्थियों की भीड़ दिखती है। साथ ही झुंड के झुंड कुत्ते दिखते है। दरअसल गंगासागर में स्नान और पूजन के बाद भिक्षुक को अन्न दान और कुत्तों को भोजन / बिस्कुट देने की प्रथा है।
गंगासागर पहुँचने पर दूर-दूर तक शांत जल दिखता है। यहाँ सागर का उद्दाम रूप या बड़ी-बड़ी लहरें नहीं दिखती है। शायद गंगा के जल के मिलन से यहाँ जल शांत और मटमैला दिखता है। पर दूर पानी का रंग हल्का नीला-हरा नीलमणि सा दिखता है। प्रकृतिक का सौंदर्य देख कर यात्रा सार्थक लगती है। लगता है, मानो गंगा के साथ-साथ हमने भी सागर तक की यात्रा कर ली हो।
हमलोगों ने जल में खड़े हो कर पूजा किया और प्रथा के अनुसार लौट कर मंदिर गए। मंदिर में मुख्य प्रतिमा माँ गंगा, कपिल मुनि तथा भागीरथी जी की है। ये प्रतिमाएँ चटकीले नारंगी / गेरुए रंग से रंगे हुए हैं। इस मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं। इस मंदिर का निर्माण 1973 में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि पहले के वास्तविक मंदिर समुद्र के जल सतह के बढ्ने से जल में समा गए है।
किवदंती-
1) ऐसा माना जाता है कि गंगासागर के इस स्थान पर कपिल मुनि का आश्रम था और मकर संक्रांति के दिन गंगा जी ने पृथ्वी पर अवतरित हो 60,000 सगर-पुत्रों कि आत्मा को मुक्ति प्रदान किया था।
ऐसी मान्यता है कि ऋषि-मुनियों के लिए गृहस्थ आश्रम या पारिवारिक जीवन वर्जित होता है। पर विष्णु जी के कहने पर कपिलमुनी के पिता कर्दम ऋषि ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। पर उन्होने विष्णु भगवान से शर्त रखी कि ऐसे में भगवान विष्णु को उनके पुत्र रूप में जन्म लेंना होगा। भगवान विष्णु ने शर्त मान लिया और कपिलमुनी का जन्म हुआ। फलतः उन्हें विष्णु का अवतार माना गया। आगे चल कर गंगा और सागर के मिलन स्थल पर कपिल मुनि आश्रम बना कर तप करने लगे।
इस दौरान राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया। इस के बाद यज्ञ के अश्वों को स्वतंत्र छोड़ा गया। ऐसी परिपाटी है कि ये जहाँ से गुजरते हैं वे राज्य अधीनता स्वीकार करते है। अश्व को रोकने वाले राजा को युद्ध करना पड़ता है। राजा सगर ने यज्ञ अश्वों के रक्षा के लिए उनके साथ अपने 60,000 हज़ार पुत्रों को भेजा।
अचानक यज्ञ अश्व गायब हो गए। खोजने पर यज्ञ अश्व कपिल मुनि के आश्रम में मिले। फलतः सगर पुत्र साधनरत ऋषि से नाराज़ हो उन्हे अपशब्द कहने लगे। ऋषि ने नाराज़ हो कर उन्हे शापित किया और उन सभी को अपने नेत्रों के तेज़ से भस्म कर दिया। मुनि के श्राप के कारण उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकी। काफी वर्षों के बाद राजा सगर के पौत्र राजा भागिरथ कपिल मुनि से माफी माँगने पहुँचे। कपिल मुनि राजा भागीरथ के व्यवहार से प्रसन्न हुए। उन्होने कहा कि गंगा जल से ही राजा सगर के 60,000 मृत पुत्रों का मोक्ष संभव है। राजा भागीरथ ने अपने अथक प्रयास और तप से गंगा को धरती पर उतारा। अपने पुरखों के भस्म स्थान पर गंगा को मकर संक्रांति के दिन लाकर उनकी आत्मा को मुक्ति और शांति दिलाई। यही स्थान गंगासागर कहलाया। इसलिए इस पर स्नान का इतना महत्व है।
कहतें है कि भगवान इंद्रा ने यज्ञ अश्वों को जान-बुझ कर पाताल लोक में छुपा दिया था। बाद में कपिल मुनि के आश्रम के पास छोड़ दिया। ऐसा उन्होने ने गंगा नदी को पृथ्वी पर अवतरित कराने के लिए किया था। पहले गंगा स्वर्ग की नदी थीं। इंद्र जानते थे कि गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने से अनेकों प्राणियों का भला होग।
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इस पवित्र तीर्थयात्रा से हम सभी लौट कर पास में त्रिय योग आश्रम गाए। यह उड़ीसा के जगन्नाथपूरी मंदिर के तर्ज़ पर कृष्ण सुभद्रा और बलराम का मंदिर है। साथ ही शिवलिंग भी स्थापित है। यहाँ हमें शुद्ध और सात्विक भोजन मिला। जिससे बड़ी तृप्ति मिली। इसके बाद हम रात ९ बजे तक कोलकाता वापस लौट आए। इस तरह से हमने एक महत्वपूर्ण तीर्थ यात्रा पूरी की। जिससे बड़ी आत्म संतुष्टी मिली। कहा जाता है –
Thanks a lot Rekhaji for giving credit.We were destined to go together for this pilgrimage… Article is well articulated.. Hope to meet you for next pilgrimage soon….
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Thnx Seema ji. We look forward for the same.
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Nice rekhaji from Ritu garg
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Thanks Ritu ji.
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Well written with justified clarification.
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बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं… सुन्दर चित्रांकन, बहुत ही अच्छा लिखा आपने
https://www.facebook.com/MadanMohanSaxena
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धन्यवाद मदन जी , मुझे आपकी गजलें और धनतेरस की जानकारी posts बड़ी पसंद आई.
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Thank you so much for the follow, Rekhasahay!
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Welcome buddy.
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सारगर्भित लेख. बधाई……….
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बहुत आभर !
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Thank you for visiting ThusNSuch.
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welcome.
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आपका यात्रा वृत्तांत बहुत ही रोचक एवं बोधगम्य लगा l ऐसा प्रतीत हुआ जैसे आपके साथ साथ मैंने भी यात्रा की l
धन्यवाद एवं नव वर्ष की बधाई l
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धन्यवाद शशी , इतने सुंदर शब्दों में प्रशंसा करने के लिये।आपको भी नये वर्ष की शुभकामनायें । मैंने आपके ब्लॉग देखने की कोशिश की, पर यह खुला नहीं।
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Thank you! So interesting….i pray to be blessed one day to go to Ganga Sagar….in person. Thanks for this beautiful virtual tour! 🙂
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Welcome n thank you 😊. Amen!!
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bahut sunder varnan kiya hai aapne rekha ji…..meri ma hi bhi hardik ichcha hai gangasagar jane me….dekhiy kab puri hoti hai
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आभार संतोष .
गंगासागर एक बार जाना चाहिए , ऐसी मान्यता है . शायद इसलिए आपकी माँ भी एक बात इस तीर्थ स्थान पर जाना चाहतीं होंगी .
ईश्वर उनकी मनोकामना जल्द पूरी करें .
शुभकामनाएँ !!!
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birthday boy bye. Shaayad busy ho tum.
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hello
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