

चुनाव क्या गज़ब का खेल है?
वैसे तो मालुम नहीं ये भगवान को कितना याद करते हैं ?पर हर पाँच साल पर धर्म, मंदिर-मस्जिद मुद्दा याद कराते हैं।
झगङे बढ़ जाते हैं, मामला वहीं का वहीं रह जाता है।
वैसे तो नहीं पता ये इंसानियत को कितना याद करते हैं?
पर हर पाँच साल पर रिजर्वेशन-आरक्षण का खेल खेलाते हैं।
कभी भारत- पाक भँजाते हैं।
छींटाकशी, टीका-टिप्पणी, आरोप- प्रत्यारोप, एक दूसरे की टाँग खिचाईं में मस्त,
अँग्रेज ‘ङिवाइङ ऐंङ रुल’ का गुरुमंत्र दे गये।
बरसों बीते, अरसे बीते …………
मुद्दा वही पुराना हिट है।
मजे की बात है पक्षी आज भी जाल में फँस जाते हैं,
काश कुछ ऐसे मुद्दे होते –
स्वस्थ प्रतिस्पर्धा, देश के उज्जवल भविष्य की बातें,
हमें यह लगता – अरे ! इस बार हम छले नहीं गये।

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