प्लास्टिक धन -कविता #Demonetization

Indian Bloggers

8 बजे तक के धन, 8:15 में बेकार कागज बन गये।

पर काले धन खत्म होने की बातों ने,

देशभक्ति की भावना भर दी।

      कुछ बचाये -छुपाये छुट्टे पैसे ले

बाजार गई।

बङी सस्ती सब्जियाँ अौर रोते किसान मिले।

मातम करती कामवालियों अौर

गोलगप्पे की जिद करती बिटिया से

नजरें बचाती, खाली एटीम अौर पर्स  देख

प्लास्टिक धन ले माॅल पहुचीँ।

उन्हीं सब्जियों को 5-10 गुणा मंहगा पाया।

क्यों नहीं देखते –

हमारा पैसा कहाँ है जाता?

कुछ समझ नहीं आता,

जो हो रहा है कितना सही या गलत है,

कोर्ट अौर नेताअों की सौ बातें सुन,

कुछ समझ नहीं आता।

 

 

शब्दार्थ –

प्लास्टिक धन- Plastic Money

 

Indispire -144