जादुई घड़ी – ( बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानी)

Story for children based on body clock . -3 scientists just won the Nobel Prize for discovering how body clocks are regulated. 

(यह कहानी बच्चों को बॉडी क्लॉक और इच्छा शक्ति के बारे में जानकारी देती है ।बाल मनोविज्ञान को समझते हुए मनोवैज्ञानिक तरीके से बच्चों को अच्छी बातें सरलता से सिखलायी जा सकती हैं। सही तरीके और छोटी-छोटी प्रेरणाओं की सहायता से बच्चों को समझाना बहुत आसान होता है। यह कहानी इन्ही बातों पर आधारित है। इस साल  बॉडी क्लॉक पर आधारित खोज को नोबल पुरस्कार मिला  है, इसलिये अपनी इस कहानी को फिर से शेयर कर रही हूँ।)

दादी ने मुस्कुराते हुए कहा- अरे, तू जाग गया है? आशु ने पूछा- दादी तुम सुबह-सुबह कहाँ गई थी? मंदिर बेटा, दादी ने बताशे मिश्री देते हुए कहा। आशु को बताशे स्वादिष्ट टाफी सा लगा। उसके सोंचा, अगर वह भी मंदिर जाए, तब उसे और बताशे-मिश्री खाने के लिए मिलेंगे। उसने दादी से पूछा – दादी, मुझे भी मंदिर ले चलोगी क्या?दादी ने पूछा – तुम सुबह तैयार हो जाओगे? हाँ, पर दादी मेरी नींद सुबह कैसे खुलेगी? आशु ने दादी की साड़ी का पल्ला खींचते हुए पूछा। तुम सुबह कैसे जाग जाती हो?

दादी ने कहा – मेरे तकियों में जादुई घड़ी है। वही मुझे सुबह जगा देतें है। लो, आज इस तकिये को सच्चे मन से अपने जागने का समय बता कर सोना। वह तुम्हें जरूर जगा देगा। पर आशु, सही समय पर सोना तकि तुम्हारी नींद पूरी हो सके। उस रात वह तकिये को बड़े प्यार से सवेरे जल्दी जगाने कह कर सो गया।

आशु स्कूल की छुट्टियों मेँ दादी के पास आया था। दादी से जादुई तकिये की बात सुनकर बड़ा खुश था क्योंकि उसे सुबह स्कूल के लिए जागने में देर हो जाती थी। मम्मी से डांट पड़ती। कभी स्कूल बस भी छूट जाती थी।

अगले दिन सचमुच वह सवेरे जाग कर दादी के साथ मंदिर गया। पेड़ पर ढेरो चिड़ियाँ चहचहा रहीं थी। बगल में गंगा नदी बहती थी। आशु बरगद की जटाओं को पकड़ कर झूला झूलने लगा। पूजा के बाद दादी ने उसे ढेर सारे बताशे और मिश्री दिये।

आशु को दादी के साथ रोज़ मंदिर अच्छा लगने लगा। जादुई तकिया रोज़ उसे समय पर जगा देता था। आज मंदिर जाते समय आशु को अनमना देख,दादी ने पूछा – आज किस सोंच मे डूबे हो बेटा? आशु दादी की ओर देखते हुए बोल पड़ा – दादी, छुट्टियों के बाद, घर जा कर मैं कैसे सुबह जल्दी जागूँगा? मेरे पास तो जादुई तकिया नहीं है।

दादी प्यार से कहने लगी – आशु, मेरा तकिया जादुई नहीं है बेटा। यह काम रोज़ तकिया नहीं बल्कि तुम्हारा मन या दिमाग करता है। जब तुम सच्चे मन से कोशिश करते हो , तब तुम्हारा प्रयास सफल होता है।यह तुम्हारे इच्छा शक्ति या आत्म-बल के कारण होता है। दरअसल हमारा शरीर अपनी एक घड़ी के सहारे चलता है। जिससे हमेँ नियत समय पर नींद या भूख महसूस होती है। इसे मन की घड़ी या बॉडी क्लॉक कह सकतें हैं। यह घड़ी प्रकृति रूप से मनुष्यों, पशुओं, पक्षियों सभी में मौजूद रहता है। इसे अभ्यास या इच्छा शक्ति द्वारा हम मजबूत बना सकतें हैं।

आशु हैरान था। इसका मतलब है दादी, मुझे तुम्हारा तकिया नहीं बल्कि मेरा मन सवेर जागने में मदद कर रहा था?दादी ने हाँ मे माथा हिलाया और कहा – आज रात तुम बिना तकिये की मदद लिए, अपने मन में सवेरे जागने का निश्चय करके सोना।आशु नें वैसा ही किया। सचमुच सवेरे वह सही समय पर जाग गया। आज आशु बहुत खुश था। उसे अपने मन के जादुई घड़ी को पहचान लिया।

 

 

Source: जादुई घड़ी – ( बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानी)

Without watching the watch -Our body clock / Circadian Rhythm शरीर की घड़ी / सर्कैडियन लय (Noble Prize 2017)

हमारा “शरीर घड़ी” / सर्कैडियन लय हमारे  सोने, उठने, भूख लगने  और कई शारीरिक प्रक्रियाओं को बिना घङी देखे हमारे शरीर को बताता  रहता है। यह आंतरिक शरीर घड़ी पर्यावरण के संकेतों  जैसे धूप और तापमान जैसी बातों से प्रभावित हो सकता है। शोधों   से इसके  शरीर पर प्रतिकूल  प्रभावों की खोज हो रही है  जैसे हृदय संबंधी परेशानियाँ, मोटापे की संभावना, अवसाद और बाइपोलार ङिसअौङर   अादि।

फिजियोलॉजी या मेडिसिन में 2017 नोबेल पुरस्कार  अमेरिकी वैज्ञानिक जेफरी सी हॉल, माइकल रोजबाश और माइकल डब्ल्यू यंग  को “सर्कैडियन लय को नियंत्रित करने वाले आणविक तंत्र की उनकी खोज” के लिए दिया गया हैं। जो फ्लाइट जेट लैग की व्याख्या करती है।

Our “body clock” /  circadian rhythm is a cycle that tells our bodies when to sleep, rise, eat–regulating many physiological processes without watching  the watch. This internal body clock may be  affected by environmental cues, like  sunlight and temperature. When one’s circadian rhythm is disrupted, sleeping and eating patterns can be disturbed. No of researches are  examining the adverse health effects such as –  chances of cardiovascular problems, obesity, and a correlation with neurological problems like depression and bipolar disorder etc.

American scientists Jeffrey C Hall, Michael Rosbash and Michael W Young have won the 2017 Nobel Prize in Physiology or Medicine for “their discoveries of molecular mechanisms controlling the circadian rhythm”.