इसे इबादत कहें या डूबना?
ज़र्रे – ज़र्रे को रौशन कर
क्लांत आतिश-ए-आफ़ताब,
अपनी सुनहरी, पिघलती, बहती,
रौशन आग के साथ डूब कर
सितारों और चिराग़ों को रौशन होने का मौका दे जाता है.

अर्थ:
आफ़ताब-सूरज
आतिश – आग
इबादत-पूजा
क्लांत –थका हुआ
इसे इबादत कहें या डूबना?
ज़र्रे – ज़र्रे को रौशन कर
क्लांत आतिश-ए-आफ़ताब,
अपनी सुनहरी, पिघलती, बहती,
रौशन आग के साथ डूब कर
सितारों और चिराग़ों को रौशन होने का मौका दे जाता है.

अर्थ:
आफ़ताब-सूरज
आतिश – आग
इबादत-पूजा
क्लांत –थका हुआ
हमने खुद जल कर उजाला किया.
अमावास्या की अँधेरी रातों में,
बयार से लङ-झगङ कर…
तुम्हारी ख़ुशियों के लिए सोने सी सुनहरी रोशनी से जगमगाते रहे.
और आज उसी माटी में पड़े हैं…..
उसमें शामिल होने के लिए
जहाँ से जन्म लिया था.
यह थी हमारी एक रात की ज़िंदगी.
क्या तुम अपने को जला कर ख़ुशियाँ बिखेर सकते हो?
कुछ पलों में हीं जिंदगी जी सकते हो?
सीखना है तो यह सीखो।
Image courtesy- Aneesh
सुनहरी स्मृतियाँ जीवन से बंधी
हाथ पकड़ साथ साथ चलती है .
खिलते फूलो , महकती ख़ुश्बू सी .
कभी ना जाने कहाँ से अचानक
फुहारों सी बरस जाती हैं और
आँखों को बरसा जातीं हैं.
कभी पतझड़ के सूखी पतियों सी
झड़ने को तत्पर हो खो जाती हैं.
लम्हा लम्हा ख़यालों में…..
दिन निकल गया , रात ढल गई
पर बातें अधूरी रह गईं.
यादें …स्मृतियाँ ….. अधूरी रह गईं.

इधर उधर बिखरे शब्दोँ को बटोरकर
उनमें दिल के एहसास और
जीवन के कुछ मृदु कटु अनुभव डाल
बनती है सुनहरी
काव्यमय कविता ……
कभी तो यह दिल के बेहद करीब होती है
सुकून भरी …मीठी मीठी निर्झर सी ….
और कभी जब यह पसंद नहीं आती
मिटे पन्नों में कहीं दफन हो जाती है -ऐसी कविता !
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