
मिथ्यारहित सत्य
चाँद को चाँद कह दिया,
ख़फ़ा हो गई दुनिया ।
जब सच का आईना
सामने आया।
सौ-सौ झूठों का
क़ाफ़िला सजा दिया।
ना खुद से ना खुदा से
बोलना सच।
और कहते हैं जीवन का
अंतिम पड़ाव है सच ….
….. मिथ्यारहित सत्य।

मिथ्यारहित सत्य
चाँद को चाँद कह दिया,
ख़फ़ा हो गई दुनिया ।
जब सच का आईना
सामने आया।
सौ-सौ झूठों का
क़ाफ़िला सजा दिया।
ना खुद से ना खुदा से
बोलना सच।
और कहते हैं जीवन का
अंतिम पड़ाव है सच ….
….. मिथ्यारहित सत्य।
तराशते रहें ख़्वाबों को,
कतरते रहे अरमानों को.
काटते-छाँटते रहें ख़्वाहिशों को.
जब अक़्स पूरा हुआ,
मुकम्मल हुईं तमन्नाएँ,
साथ और हाथ छूट चुका था.
सच है …..
सभी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
किसी को जमीं,
किसी को आसमाँ नहीं मिलता.
यह सच है
अँधेरे में अपनी परछाईं भी साथ छोङ जाती है,
पर कुछ अपनों की पहचान हो जाती है।
अौर
कुछ अपने बनने वालों की सच्चाई सामने आ जाती है।