भूल

किस से शिकायत करें?
सिर पटका दर-ए-ख़ुदा पर.
ईश्वर के आगे .
कहीं सुनवाई नहीं हुई .
ना जाने कहाँ भूल हुई ?
भूलना चाह कर भी भूल नहीं सकते.
कहते हैं नियति बदली नहीं जा सकती.
पर हमें तो था वहम …..
हाथ पकड़ कर जगा लेने का
वहम, भ्रम और ग़रूर

Painting courtesy- Lily Sahay

ज़िंदगी के रंग -192

जी लो ज़िंदगी, जैसी सामने आती है.

सबक़ लो उस से …..

क्योंकि ज़िंदगी कभी वायदे नहीं करती.

इसलिए उससे शिकायतें बेकार है.

और जिन बातों को हम बदल नहीं सकते.

उनके लिए अपने आप से शिकायतें बेकार है.

छोटी-छोटी खुशियां हीं बड़ी खुशियों में बदल जाती हैं

जैसे छोटी दिवाली….से  बड़ी दिवाली ।

शुभ छोटी दिवाली!!!

 

 

मुस्कुराते है….

मुस्कुराते है….

अपने दर्द को छुपाने के लिए,

अपनों का हौसला बढ़ाने के लिए,

ग़मों से दिल को बहलाने के लिए.

पर  क्यों इससे भी शिकायत है?