दोनों ने एक दूसरे को देखा ग़ौर से,
फिर दरिया पर बरसते बादल से पूछा
दरिया ने –
मुझे मेरा दिया हीं लौटा रहे हो?
या अपने राज मेरे कानों में गुनगुना रहे हो …
क्या अपने दिल की बातें मुझे सुना रहे हो?


जागता रहा चाँद सारी रात साथ हमारे.
पूछा हमने – सोने क्यों नहीं जाते?
कहा उसने- जल्दी हीं ढल जाऊँगा.
अभी तो साथ निभाने दो.
फिर सवाल किया चाँद ने –
क्या तपते, रौशन सूरज के साथ ऐसे नज़रें मिला सकोगी?
अपने दर्द-ए-दिल औ राज बाँट सकोगी?
आधा चाँद ने अपनी आधी औ तिरछी मुस्कान के साथ
शीतल चाँदनी छिटका कर कहा -फ़िक्र ना करो,
रात के हमराही हैं हमदोनों.
कितनों के….कितनी हीं जागती रातों का राज़दार हूँ मैं.
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