मेरे वजूद का एक हिस्सा
कहीं पीछे छूट गया है,
बिना क़र्ज़ अदा किए
छोड़ जानेवाले के साथ।
अपने हिस्से की जिम्मदारियों
के क़र्ज़ उतारते उतारते
ज़िंदगी में आगे बढ़ गई हूँ ।
मगर ज़िंदगी का ब्याज
ख़त्म होता नहीं।

Topic by -YourQuote
मेरे वजूद का एक हिस्सा
कहीं पीछे छूट गया है,
बिना क़र्ज़ अदा किए
छोड़ जानेवाले के साथ।
अपने हिस्से की जिम्मदारियों
के क़र्ज़ उतारते उतारते
ज़िंदगी में आगे बढ़ गई हूँ ।
मगर ज़िंदगी का ब्याज
ख़त्म होता नहीं।

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