अतीत की स्मृतियों का बोझ दम घोटने लगता है . अौर उनमें जीने की चाहत भी होती है।
यह कोशिश, कुछ ऐसी बात है जैसे – आँधियाँ भी चलती रहें, और दिया भी जलता रहे..।
अतीत की स्मृतियों का बोझ दम घोटने लगता है . अौर उनमें जीने की चाहत भी होती है।
यह कोशिश, कुछ ऐसी बात है जैसे – आँधियाँ भी चलती रहें, और दिया भी जलता रहे..।
धूप सेंकते मोटे अजगर सी
बल खाती ये काली अनंत
अंतहीन सड़कें
लगतीं है ज़िंदगी सी ……
ना जाने किस मोड़ पर
कौन सी ख़्वाहिश
मिल जाए .
कभी ज़िंदगी को ख़ुशनुमा बनाए
और कभी उन्हें पूरा करने का
अरमान बोझ बढ़ाए .
दिलों दिमाग़ का बोझ
जब तन तक उतर आए …..
जिस्म को उदास , मायूस बीमार बनाए .
तब ज़रूरी है इसे ऊतार फेंकना.
वरना तन और मन दोनो
व्यथा …दर्द में डूब जाएँगे .

बंद आँखें ….
कंधे पर ले बोझ ,
जलते अौर चलते जाना जीवन नहीं !!!
दिल की धङकने
और अपनी अंदर जल रही लौ
का दर्पण,
खुले पंख ,
खुशी अौर दर्द के साथ जीना ….
….उङना,
ऊपर उठना सीखा देती है!!!!!
दर्द भरे दिल पर पङे बोझ को जब उठाया
उसके तले दबे
बहुत से जाने पहचाने नाम नज़र आये।
जो शायद देखना चाहते थे….
तकलीफ देने से कितना दर्द होता है?
पर वे यह तो भूल गये कि
चेहरे पर पङा नकाब भी तो सरक उनके असली चेहरे दिखा गया।