शाम के धुँधलके में एक बड़ा चमगादड़,
अपने विशाल पंख फैलाए,
इतराता, उड़ता हुआ ऐसे गुज़रा,
जैसे रातों का राजा हो …..
कहा हमने – बच्चू यहाँ हो इसलिए इतरा रहे हो,
चीन में होते तो सूप के प्याले में मिलते …….
पास के पेड़ पर उलटा लटक कर वह हँसा और बोला-
हम भी कुछ कम तो नहीं.
एक झटके में सारी दुनिया उलट-पलट दी.
अब चमगादड़ का सूप पीनेवालों को
अपनी छोटी-छोटी पैनी आँखों से चिकेन भी चमगादड़ दिखेगा.
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