इश्क़

कुछ मोहब्बतें

जलतीं-जलातीं हैं।

कुछ अधुरी रह जाती हैं।

कुछ मोहब्बतें अपने

अंदर लौ जलातीं हैं।

जैसे इश्क़ हो

पतंग़े का चराग़ से,

राधा का कृष्ण से

या मीरा का कान्हा से।

लौ अौर पतंगा

जबान चुप थी पर आँखोँ हीं आँखों में बातें हुईं –

तङपते पतंगे ने कहा – मैंने जला दिया अपने-आप को,

जान दे दी

तेरी खातिर।

अश्क  बहाती मोमबत्ती ने

कहा मैं ने भी तो तुम्हें

अपने दिल 

अपनी लौ  को चुमने की इजाजत दी।