हरीफ़

मुझे तन्हा न कर जाना

कहने में देर हो गई कि

मुझे तन्हा न कर जाना।

तन्हा हैं रात-दिन और फ़ज़ाएँ

कहाँ खोजें, कैसे भूल जायें?

अब है तन्हाई की उस मंज़िल पर,

जहाँ मालूम नहीं

यह मकाँ है, क़ब्र है, या मज़ार है?

जी रहे है क्योंकि मर-मर कर,

जीने के तरीक़े हज़ार है।

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